स्नैक्स
प्रकृति राय/ PRAKRITI RAI
चाट-पकौड़ी किसे नहीं पसंद, हम सभी बहुत चाव से खाते हैं. हमारे यहां की
चाट है ही कुछ ऐसी कि एक बार खाओ तो खुद को रोक नहीं पाओगे.
यूं तो चाट खाने हम लोग अधिकतर बाहर ही जाते हैं. उत्तर भारत के लगभग हर
छोटे-बड़े शहर में चाट मिल जाती है. अलग-अलग जगहों पर चाट खाने का मज़ा अलग है
क्योंकि हर जगह इसे बनाने का तरीका कुछ-कुछ अलग होता है और स्वाद भी अलग. वैसे हम
लोग जिस शहर में रहते हैं वहीं पर चाट खाने के हमारे पसंदीदा प्वाइंट्स बन जाते
हैं.
बाहर चाहे जितना भी खा लीजिये तसल्ली घर पर ही होती है जब आप जी भर के चाट
खाते हैं, फुर्सत में और घर के आराम के बीच. दिक्कत यही होती है कि चाट बनाने और
खाने का कार्यक्रम थोड़ा झंझट भर होता है जिसके लिये तैयारी पहले से करनी पड़ती
है. आजकल की व्यस्त ज़िंदगी में कई बार ऐसा होता है कि हम पहले से पूरी प्लानिंग
नहीं कर पाते. ऐसे में कई बार मन मारकर रह जाना पड़ता है.
एक रोज़ मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. घर में खाने-पीने की चर्चा हो रही था
और इसी बीच चाट का भी ज़िक्र आया. अब सभी का मन कर गया कि चाट खाई जाए और वो भी घर
पर. मेरी रसोई में कोई तैयारी नहीं थी पर बुनियादी सामग्री लगभग सभी थी. ऐसे में
मैंने कुछ घंटे का समय मांगा और वादा किया कि आज शाम चाट-पार्टी होगी. वादा तो कर
लिया पर वक्त कम था. परिवार के सदस्यों ने भी कोई बड़ी डिमांड नहीं रखी और कहा कि
जो कुछ भी हो जाए कर लें जिससे मन की इच्छा पूरी हो जाए.
सामग्री की तैयारी
मेरे पास सफेद मटर थी जिसे मैंने तुरंत भिगो दिया और बाद में उबालने के लिये प्रेशर कुकर पर चढ़ा दिया. फ्रिज में कुछ उबले आलू रखे थे जिसका इस्तेमाल गोल-गप्पों में भरने के लिए किया जा सकता था. गोल-गप्पे बनाने के लिये सूजी का आटा नहीं गूंथा, बल्कि बाज़ार से रेडीमेट वाले इस्तेमाल किये जो मैं अमूमन अपनी रसोई में रखती हूं. सच पूछें तो मुझे बाज़ार से लाकर तलने वाले गोल-गप्पे बहुत रास नहीं आते पर काम चलाने के लिये बुरे भी नहीं होते. यह भी तय हुआ कि बाज़ार से कुछ समोसे आ जाएं तो साथ ही साथ समोसा चाट का भी लुत्फ लिया जा सकेगा. दही घर में था, धनिया-पुदीना और कच्चे आम की खट्टी-मीठी चटनी भी थी. गर्मी के दिनों में यह खट्टी-मीठी चटनी बनाकर फ्रिज रख देती हूं. आज इसका इस्तेमाल चाट में भी हो गया. गोल-गप्पे का पानी बनाने के लिये जलज़ीरा पाउडर का इस्तेमाल किया पर इसमें थोड़ा पुदीना पेस्ट, भुने ज़ीरे का पाउडर और कच्चे आम को भी मिलाया जिससे स्वाद कुछ बेहतर हो जाए.
शाम ढल गई थी. मैंने तेल कढ़ाई में गर्म करना शुरू कर दिया जिससे गोल-गप्पे तले जा सकें. मैंने ढेर सारे गोल-गप्पे तल लिये. कुछ बच जाएंगे तो बाद में स्नैक्स की तरह खा लिये जाएंगे. आखिर घर में बनाने-खाने का यही तो फायदा है कि अगले दिन भी स्वाद ले सकते हैं. मटर एक अलग बर्तन में निकाल ली गई जिसे हमने उबले आलू के साथ मिक्स करके गोल-गप्पे में भरने के लिये इस्तेमाल किया.
बताती चलूं कि उत्तर प्रदेश में गोल-गप्पे में भरने के लिये उबली सफेद मटर
का प्राय: इस्तेमाल होता है. दिल्ली में उबले आलू और उबले काले चने भरे
जाते हैं. मैंने चेन्न्ई में भी गोल-गप्पे खाए हैं और वहां भरने के लिए बारीक कटी
प्याज़ का इस्तेमाल देखने को मिला.
दही को फेंटकर थोड़ा ढीला किया गया. चटनी निकाल दी गई. मेरी रसोई में इस बार सोंठ की चटनी नहीं थी और इतना वक्त भी नहीं था कि इसे बनाया जा सके. अगर पहले से प्लानिंग कर लें तो बेहतर होगा आप सोंठ की चटनी बना लें जिससे स्वाद और बढ़ जाएगा. मेरा बेटा बाज़ार से ‘इमली चटनी‘ या सॉस लाकर फ्रिज में रखे रहता है और कभी मठरी वगैरह के साथ खाता है. आज यह बहुत काम आई. एकदम सोंठ की चटनी का स्वाद तो नहीं देती पर बहुत हद तक स्वाद दे जाती है. इन सबके बीच बाज़ार से गरमागरम समोसे भी आ गए. अब क्या, बस खाने का इंतज़ार था.
इस तरह से आज मेरी रसोई में झटपट चाट का कार्यक्रम बना और अंजाम तक
पहुंचाया गया. इसके बाद तो लोगों ने जमकर गोल-गप्पे का स्वाद लिया और कोई नहीं
बोला कि आटे के खाने हैं या कि सूजी के. एक सबसे महत्वपूर्ण बात और वो ये कि
गोल-गप्पे गिनती करके नहीं खाए-खिलाए गए बल्कि यह कहकर खाए-खिलाए गए कि दो-एक और
लो भाई. दुकान में एक-एक गोल-गप्पे की गनिती होती है और कई बार तो झगड़ा भी हो
जाता है कि एक कम खिलाया. बाज़ार में रेडीमेड पापड़ी भी मिल जाती है. एक पैकेट वो
भी मंगवा ली थी. अब तैयार हो गई थी पापड़ी-चाट.
समोसा चाट भी दिलचस्प रही. मैंने तो अलग से मटर की चाट भी खाई. उबली मटर
में दही-चटनी मिलाकर बाज़ार के सेंव ऊपर से छिड़क दिये, थोड़ा प्याज़ काटकर लाई थी
और उसे भी मिला दिया. अब मुझे मिला एक अनोखा, नया स्वाद;
ऐसा स्वाद जो चाट की अच्छी से अच्छी
दुकान में भी नहीं मिलेगा. कितनी जल्दी में कितना स्वाद निकल आया था आज मेरी रसोई
में, सोचकर अचंभा ही हो रहा था. लोगों ने जी भरके और पेट भरके खाया;
चाट की दुकान में इतना खाना हो ही नहीं सकता, यकीन मानिये.
वैसे सच पूछें तो
चाट फुर्सत से आनंद लेकर खाने की चीज़ है. चाट का मज़ा तो तभी है कि स्वाद आए, पेट
भर जाए पर जी न भरे और जेब पर भी वज़न न पड़े. यह भी सच है कि इन दिनों चाट इतनी
महंगी हो गई है कि पूरे परिवार के साथ बाज़ार में खाना मुश्किल लगता है. इतना सब
तो सिर्फ घर पर ही हो सकता है. विश्वास नहीं करेंगे खत्म करते-करते करीब दो घंटे बीत
गए और वक्त का पता हीं नहीं चला.
हंसते-खाते एक खूबसूरत
शाम की तैयारी पूरी हुए आज मेरी रसोई में. एक छुट्टी का बढ़िया इस्तेमाल हुआ और
यादगार खाना-खिलाना हुआ.
No comments:
Post a Comment