February 08, 2017

संवार दो, उत्तर प्रदेश को संवार दो !



अपूर्व राय
 
लोकतंत्र का जश्न देखना हो तो चुनावों का इंतज़ार कीजिये. और अगर चुनाव भारत में हो रहे हैं तो दृ्श्य बहुत ही दिलचस्प और मज़ेदार हो जाता है. चुनावी दिनों में तो मुझे अपने यहां की राजनीति में वही मज़ा आता है जो आम दिनों में सड़क किनारे ठेले पर एक दोना चाट खाने पर आता है.

कभी चाट के ठेले पर गौर फरमाइये... खाने वाले और खिलाने वाला दोनों ही मगन मिलेंगे.  किसी को दीन-दुनिया की फिक्र नहीं-- कोई काम बचा है तो बाद में हो जाएगा, पहले जी भर चाट तो खा लें. किसी को नमक ज़ायादा लग रहा है तो किसी को कम. किसी को मीठा पसंद है तो किसी को तीखा. पर ठेले से कोई वापस नहीं जाता और चाटवाले की खूबसूरती तो देखिए कैसे खुश करता है सबको. सचमुच, चाटवाला है या जादूगर ! देखिये तो चाट की दुकान वही और चाटवाला भी वही; कितनी खूबसूरती से उस छोटे से दोने में स्वाद परोसता है कि हर कोई खुश हो जाता है. आंख से आंसू (पानी) गिर रहा है, नाक बह रही है, ज़बान मिर्च से लटपटा रही है... पर कोई शिकवा नहीं.
लज़ीज़ चाट किसे नहीं पसंद.

कुछ ऐसा ही मिज़ाज भारत में चुनाव के समय पर देखने को मिलता है. जनता भले ही सिसकती रहे, सकपकाती रहे, रोती रहे-- नेता किस खूबसूरती से हरएक को लुभाते हैं, खुश करते हैं यह देखने लायक होता है. आप बोलते रहिये और नेता हर बात का जवाब देते रहेंगे. नेताओं के अंदर कोई कमी दिखने को मिलेगी और न ही उनकी दुकान (पार्टी) में.

एक बार आपकी जेब ढीली हुई तो माल सीधा चाटवाले की जेब में... और वोट निकला तो सीधा नेता का बेड़ा पार. घर जाकर अगर आपका पेट खराब होता है या दिमाग तो आप जानिये... जिसको फायदा होना था उसको तो हो गया !

साल 2017 की शुरुआत भी चुनाव के साथ हुई है. कुछ राज्यों की विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं... पर इनमें सबसे दिलचस्प है उत्तर प्रदेश. न सिर्फ इस राज्य ने देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री दिए हैं बल्कि माना यह भी जाता है कि यहां अपना झंडा बुलंद करने वाली पार्टी केंद्र में भी अपना खासा असर रखती है.

इलाहाबाद में लगने वाले कुंभ में साधु-संतों के अलावा दुनिया भर से भक्तगण आते हैं.
उत्तर प्रदेश की महिमा भी अद्वितीय है-- देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उत्तर प्रदेश से थे, यहीं पर वाराणसी जैसी देवनगरी है जहां गंगा नदी को मां की तरह पूजा जाता है और जहां मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.

यही वो राज्य है जहां दो मज़हबों के नाम पर दो बड़े विश्वविद्यालय हैं... बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, यहीं इलाहाबाद है जहां तीन नदियों-- गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है. इसके अलावा इलाहाबाद में ही कुंभ मेला लगता है जो विश्व के सबसे बड़े मेलों में से एक है. कुंभ मेले के अवसर पर संगम में डुबकी लगाने साधु-संत ही नहीं दुनिया भर से लोग आते हैं.

राजधानी लखनऊ नवाबी तहज़ीब का प्रतीक मानी जाती है, मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की नगरी है तो अयोध्या भगवान राम की. विश्व के सात अजूबों में से एक ताजमहल आगरा शहर में है. यही वो राज्य है जहां बनारस की सुबह और लखनऊ की शाम दुनियाभर में मशहूर है. यही वो राज्य है जहां अगर नेताओं और उनके भाषणों को परे कर दें तो हिंदू-मुसलमान के आपसी मेलजोल और प्रेम की मिसालें दी जाती हैं. हिंदू-मुसलमान के इसी मिलनसार व्यवहार को गंगा-जमुनी तहज़ीब का नाम मिला है जिसे दुनिया भर में मिसाल माना जाता है.
 
बनारस की सिल्क की साड़ियां और लखनऊ का चिकनकारी के वस्त्र हर किसी की पसंद है. यही वो अकेला राज्य है जहां की हर चीज़ निराली है--- चाहे वो भोजन हो, मिठाइयां हों, त्योहार हों, कपड़े हों या फिर साहित्य और लोक गीत-संगीत. उत्तर प्रदेश मशहूर है लखनऊ की चिकनकारी के लिए, मुरादाबाद पीतल के बर्तनों के लिए, फिरोज़ाबाद कांच की वस्तुओं के लिए, बनारस रेशम और ज़री के लिए, भदोही और मिर्ज़ापुर कालीनों के लिए, आगरा और कानपुर चमड़े के सामान के लिए, खुर्जा और चिनहट (लखनऊ) चीनी-मिट्टी के बर्तनों के लिए.

उत्तर प्रदेश ही वो राज्य है जहां मुग़ल सम्राट अकबर और शाहजहां हुए, अवध के नवाब वाजिदअली शाह हुए, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद हुए, कविवर जयशंकर प्रसाद, निराला और महादेवी वर्मा हुए, काका हथरसी का हास्य किसको नहीं गुदगुदाता, कैफी आज़मी के शेर किसके दिल को नहीं छूते, हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला और पुत्र अमिताभ बच्चन का सिनेमा में सिक्का, बेगम अख़तर की गज़लें तो गिरिजा देवी की ठुमरी... नाम गिनाते जाइये, फेहरिस्त लंबी होती जाएगी.
उत्तर प्रदेश ने देश को कुछ बेशकीमती नगीने दिए हैं जिनमें मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, बेगम अख़्तर शामिल हैं. 
इतना सब होने के बावजूद उत्तर प्रदेश देश अव्वल कहलाए जाने से कोसों दूर है. यहां पिछड़ापन है, विकास और आधुनिकता की कमी है, उद्योग बीमार हैं, खेती खस्ताहाल है, शिक्षा का स्तर न्यूनतम पर है. कानपुर को कभी प्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक नगर होने का गौरव प्राप्त था पर आज बदहाल है, उच्च शिक्षा हासिल करने कभी दूर-दूर से लोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय आते थे पर आज कोई नाम भी नहीं लेता.

देश के बड़े राज्यों में से एक होने का गौरव प्राप्त होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में रोज़गार का अभाव है, कोई भी ऐसा बड़ा उद्योग नहीं है जिसकी मिसाल दी जा सके, एक भी बड़ा अस्पताल नहीं है जहां लोग भरोसे के साथ इलाज करा सकें और कोई भी शहर ऐसा नहीं है जो आधुनकता की किसी भी कसौटी पर खरा उतरे. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के युवक उच्च शिक्षा और अच्छी नौकरी के लिए प्रदेश के बाहर चले जाते हैं और यहां के लोग इलाज के लिए दिल्ली, मुंबई या अन्य जगह जाते हैं.

उत्तर प्रदेश के भदोही में बनी कालीनों की मांग दुनिया भर से आती है किंतु बुनकरों की स्थिति में कोई सुधार नहीं है.राज्य में ढेरों पर्यटक स्थल हैं जहां दुनिया भर के लोग आते हैं पर इनमें से एक भी शहर ऐसा नहीं जहां गंदगी न हो, बदइंतज़ामी न हो, दुर्व्यवस्था न हो, अनियमितता न हो, असुरक्षा न हो या प्रदूषण और पिछड़ापन न झलकता हो. राज्य के किसी भी विश्व विख्यात पर्यटन स्थल चले जाइये पर बेफिक्र और निडर होकर घूम पाना एक सपने की तरह है. न तो रस्ते ठीक हैं और रास्तों को बतलाते साइनबोर्ड तो शहर में शायद इक्का-दुक्का ही मिलें.

भदोही और मिर्ज़ापुर के कालीन आपका मन मोह लेंगे पर यहां के बुनकर या तो कर्ज़ में डूबे हुए हैं या फिर दूसरे कामों की ओर भाग रहे हैं. बनारस की साड़ियां हर शादी की शान हैं पर इसे बनाने वाले बहदाल हैं और न ही इनके व्यापार के लिए कोई ट्रेड सेंटर या इन्हें खरीदने के लिए कोई भरोसे की जगह.

जिस राज्य में इतना सब कुछ हो और कुछ काम किया या नहीं पर गिनाने को बहुत कुछ हो तो कौन भला सरकार नहीं बनाना चाहेगा. उत्तर प्रदेश ही है जहां मौके बहुत हैं-- काम करने के भी, गिनाने के भी.
लखनऊ के कैसरबाग इलाके का एक दृश्य जहां रोज़ ट्रेफिक जाम लगना आम बात हो गई है. अफसोस कि अधिकारियों ने इसके लिए कई दशकों से कुछ नहीं किया.

उत्तर प्रदेश में बहुत सी सरकारें आईं और गईं, लगभग हर पार्टी की सरकार ने राज्य में शासन किया पर कमियां जस की तस रहीं हालांकि विकास के नाम पर दावे बहुत से किए गए. कोई रकार ऐसी नहीं आई जिसने आंकड़े गिनाने में कोई कसर छोड़ी हो पर फिर भी न तो कोई टिक कर शासन कर सका और न ही राज्य का विकास हो सका.

काश कि उत्तर प्रदेश को एक सच्ची सरकार मिल पाती, कोई ईमानदारी से इस खूबसूरत राज्य को अपना समझकर सींचता और हरा-भरा बनाता. काश कोई आंकड़ों की जगह किसान और आम आदमी का मुस्कराता चेहरा दुनिया के सामने रख पाता.

अच्छा लगता अगर कोई सत्ता का इस्तेमाल अपनी तरक्की के बजाय सूबे की तरक्की के लिए करने की नियत रखता.

मेरे ख्याल से !

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