November 17, 2016

मेरा रुपया मेरी मुट्ठी में



अपूर्व राय

नरेंद्र मोदी को चर्चा में रहने की कला आती है; चाहे वो गुजरात के मुख्य मंत्री रहे हों, चाहे बीजेपी को सत्ता में लाने वाले स्टार प्रचारक या फिर आज के प्रधानमंत्री. कभी सपनों के भारत की बात करना, कभी लोगों के मन की बात करना, कभी देश-विदेश के अथक दौरे करना, कभी योग करना या फिर नई- नई पोशाक का शौक--- मोदी ने देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है. भला कहें या बुरा, मोदी को भुला पाना मुश्किल है. 

अभी तक की बात तो जो थी सो थी; लोग सोच रहे थे अच्छे दिनों की बात सिर्फ हो ही रही है पर कुछ अच्छा होता दिख नहीं रहा-- रोज़मर्रा की ज़िंदगी वैसी ही जद्दोजहद से भरी है, महंगाई काबू में नहीं है, अपराध कम नहीं हो रहे, असुरक्षा बढ़ रही है, उद्योग तरक्की नहीं कर रहे, किसान उपज नहीं बढ़ा सक रहे, किसी को नौकरी मिल नहीं रही तो किसी की छूटी जा रही है, कभी सूखा पड़ जाता है तो कभी सैलाब आ जाता है, समाज में कोई मौज कर रहा है तो कोई परिवार पालने के लिए कशमकश कर रहा है. आधुनिकता और विकास महज़ मेट्रो ट्रेन, मोबाइल फोन और इंटरनेट पर आकर रुक जाता है. देश के किसी भी बड़े शहर में एकबारगी टहल जाइये आपको हर तरफ लापरवाही की मिसाल मिलेगी और ऐसे में छोटे शहरों की बात क्या करें. विकास की बात तो हर कोई कर रहा है पर अफसोस तो इस बात का है कि विकास दिख नहीं रहा, महसूस नहीं हो रहा.

इन सबके बीच एक रोज़ शाम को मोदी जी अचानक प्रकट होते हैं और घोषणा कर देते हैं कि अब से पांच सौ और एक हज़ार रुपए के नोट अमान्य होंगे. बैठे-बिठाए ये नोट बेकार हो गए. सुनते ही मानो पांव तले धरती सरक गई, कोई भूचाल आ गया और लोग रात का खाना भूल गए. एक बार फिर से मोदी जी चर्चा में आ गए. कश्मीर से कन्याकुमारी तक जन-जन उनकी बात कर रहा था--  कोई भला-बुरा कह रहा था तो कोई उनकी घोषणा को साहसिक कदम बतला रहा था. लेकिन सरकार का यह कदम शायद उचित था क्योंकि आतंकवाद के ऊपर लगाम लगाना ज़रूरी हो गया था और उधर काले धन का नंगा नाच भी रोकना था.

मोदी जी की 8 नवंबर की इस घोषणा के बाद से पूरे देश के हालात बदल गए और ऐसे बदले कि शायद खुद प्रधानमंत्री ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी. दस दिन के करीब बीत चुके हैं और पूरा देश आज भी अपने नोट बदलवाने के लिए बैंकों के आगे लाइन लगाए खड़ा है. आज सड़क-सड़क और गली-गली जो नज़ारा दिख रहा है ऐसा शायद ही किसी ने देखा होगा. क्या सरकार में किसी ने ऐसे दृश्य की परिकल्पना की थी; शायद नहीं!

सरकार की तरफ से ज़रूर कहा गया कि लोगों को कुछ परेशानी होगी पर जल्दी ही सब कुछ ठीक हो जाएगा. लेकिन हालात ऐसे हो जाएंगे किसी ने सोचा भी न था. क्या योजना के क्रियान्वयन में कुछ खामी रह गई? मुझे लगता है बहुत कमियां रह गईं. सवा सौ करोड़ लोगों के देश में कोई योजना भला बिना किसी ठोस तैयारी के कैसे लागू की जा सकती है. कितनी शर्म आती है मुझे जब मैं देखता हूं लाखों आदमी अपना काम-धंधा छोड़कर बैंकों के आगे लाइन लगाए खड़ा है और वो भी अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा बदलवाने या फिर अपने खाली बटुए में चार पैसे बटोरने के वास्ते.

क्या इसी तरह से हम विकास करेंगे? कभी-कभी सोचता हूं कि अगर ऐसी ही योजना किसी विकसित देश जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी या जापान में लागू की जानी होती तो वो कैसे करते? कल्पना कीजिये कि अमेरिका में भी अगर ऐसा ही कुछ फैसला हो हो जाता है तो क्या होगा? क्या पूरा मुल्क काम छोड़कर डॉलर बदलवाने बैंक के आगे लाइन लगाकर खड़ा हो जाएगा और वो भी एक दिन नहीं, दो दिन नहीं... दस-बीस दिनों तक! अगर अमेरिका में ऐसा कुछ हो जाए तो पूरी दुनिया में खलबली मच जाएगी, दुनिया के हर अख़बार में इस बात की सुर्खियां बन जाएंगी, हर न्यूज़ चानल में बांक के आगे खड़े अमेरिकियों की तस्वीरें दिखाई जाएंगी. ऐसा हो जाएगा मानो दुनिया में इससे बड़ी ख़बर ही नहीं है. लेकिन इस बात का यकीन मानिये कि अमेरिका में अगर कुछ ऐसा हो भी गया तो वहां किसी को काम छोड़कर डॉलर बदलवाने के लिए लाइन में खड़े होने की कतई ज़रूरत नहीं पड़ती. हर कोई अपना काम करता रहेगा और उसका पूरा पैसा भी उसे सुरक्षित मिल भी जाएगा... बिना किसी नुकसान, बिना किसी दिक्कत, बिना किसी परेशानी और बिना किसी हर्ज़े के.

लेकिन ये भारत है दोस्तों. यहां बड़े-बड़े फैसले ले लिए जाते हैं लेकिन ये कोई नहीं जानता काम कैसे होगा, किस तरह से होगा, कब तक होगा, किस तरह के हालात बनेंगे और किस तरह की मुश्किलें आएंगी और उन मुश्किलों से कब तक, किस तरह से निपटा जा सकेगा. बस हर कोई हवा में तीर छोड़ रहा है.

सरकार ने नोटबंदी के ज़रिये निशाना किसी पर साधा था लेकिन शिकार कोई और हो गया. देश के हर शहर और गांव में आम जनता लाइन में खड़ी है अपना ही पैसा पाने को क्योंकि जो उसकी जेब में है वो कागज़ का टुकड़ा हो चुका है. दोबारा जेब में रकम आ जाए इसके लिए सब लाइन लगाए खड़े हैं. पर उन लोगों को क्या फर्क पड़ता है जो अफसर हैं, नेता हैं, रसूखदार हैं, सिफारिशी हैं या फिर पैसेवाले हैं. इन सबका का काम तो बिना लाइन में लगे ही हो गया या फिर हो रहा है. सचमुच दांव सिर्फ अखाड़े में ही नहीं खेले जाते असल ज़िंदगी में भी खेले जाते हैं. रईसों ने ऐसे दांव खेले कि साफ बच निकले और देखने वाले देखते रह गए.

सरकार का मानना है कि देश के भीतर ही ढेरों काला धन है जिसे निकालना आवश्यक है और इसी को देखते हुए 500 और 1000 रुपए के नोट बंद कर दिए गए. उम्मीद जताई जा रही है कि रईसजादे इन नोटों को या तो सरकार को लौटा देंगे या फिर उन्हें जला देंगे. इस तरह से बाज़ार में घूम रहा लाखों का काला धन यकायक रुक जाएगा और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में कुछ आसानी हो जाएगी.

जिनके पास ये नोट काले धन की शक्ल में बोरियों, तकियों या गद्दों में छिपे थे वो एक पल तो घबराए ज़रूर पर उन सबने रास्ता निकाल लिया. काले धन ने एक नए धंधे को जन्म दिया और पैसे वाले लोग 1000 के बदले 700 रुपए धड़ाधड़ ले आए क्योंकि कुछ नुकसान भले ही हो जाए पर रुपया काम तो आ गया. कुछ और पहुंचवाले लोग भी थे जिनके साथ बैंकवालों ने 'दोस्ती' निभाई. कहा तो यहां तक गया कि इस दोस्ती की कीमत भी अदा की गई क्योंकि अपना पैसा बचाना था और लंबी कतारों से भी बचना था. इसके अलावा कुछ और 'काले रईस' थे जिन्होंने सोने के सिक्के खरीदकर सूटकेस भर लिए. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने रातों रात रुपए देश केबाहर रवाना कर दिए और वो रुपए अब डॉलर या दिरहम बन गए. Afterall, right conection matters.

सच दोस्तों, जुगाड़ का देश है ये. यहां कोई काम ऐसा नहीं जिसके लिए जुगाड़ न निकल आए.

मारा गया तो आम आदमी जिसके पास न तो काला धन है कि एक हज़ार के सात सौ ले आए, न ही सोने के सिक्के खरीदने की कूबत है और न ही अफसरों/ बैंक वालों की सिफारिश कि घर बैठे रुपए बदलकर आ जाएं. सरकार भले ही अपनी पीठ ठोंक ले पर काला धन निकला कहां. रईसज़ादे कुछ 'गरीब' ज़रूर हुए पर काम बन गया. कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी तो पड़ता है.

सच में पैसे वाले ठीक ही कहते हैं रुपए का कोई रंग नहीं होता--- रुपया तो रुपया है काला हो या सफेद. रुपए की ताकत उसके रंग से नहीं बदलती. रुपया कमाने के लिए कोई मेहनत करता है तो कोई मेहनत के साथ-साथ ख़तरे भी मोल लेता है. आखिर किसे नहीं पसंद उसकी जेब रुपयों से भरी हो, अपनी ख्वाहिश पूरा करने के लिए रुपयों की खातिर मायूस न होना पड़े. जो पैसे वाला है वो हर सुख का स्वामी है, कष्ट तो ग़रीबों के लिए है. और ऐसे में जब सरकार कोई सख्त कदम उठाती है तो यही काले धन के मालिक उसका मुनासिब तोड़ निकाल लेते हैं. 

बेहतर होता मोदी जी भी कोई ऐसा कदम उठाते कि काले धन के मालिकों को दिन में तारे नज़र आ जाते... फिलहाल अगर वो मुस्कुरा नहीं रहे हैं तो रो भी नहीं रहे हैं.

लेकिन इसके बावजूद लाइन में खड़े उस आम आदमी का जज़्बा देखिए कि मोदी के कदम की सराहना करने से नहीं चूक रहा. लाइनों में खड़ा ये आम आदमी ही सच्चा है, ईमानदार और वफादार है. बेईमान आखिर बेईमान ही होते हैं-- चाहे वो रुपए का मामला हो या फिर वोट का. बेइमानों का क्या भरोसा... वो तो पैसों से सामान खरीदते हैं, आदमी और ईमान भी.


जय हो मोदी... हर हर मोदी !

August 06, 2016

बरसात की वो शाम और मेरा व्याकुल मन!



अपूर्व राय

गर्मी की तपती दुपहरी में आसमान की तरफ ताकते हुए मन में एक ही सवाल कौंधा-- उफ, कब इस नीले गगन पर कारे बदरा छाएंगे और कब आकाश से बरसती बूंदें तन-मन की अग्नि को शीतलता प्रदान करेंगी.

ऐसा नहीं है कि मेरा मन ग्रीष्म ऋतु से नाराज़ था लेकिन फिर भी व्याकुलता बढ़ती जा रही थी. यह मनुष्य का स्वभाव है कि जैसे- जैसे समय नज़दीक आता जाता है मन की व्याकुलता बढ़ने लगती है और इंतज़ार की घड़ियां काटे नहीं कटतीं. मेरा मतलब है कि गर्मियां खत्म होने को थीं और हर दिन, हर पल वर्षा ऋतु का इंतज़ार था... जाने कब सावन बरसेगा, आसमान से बरसती बूंदें धरती की प्यास बुझाएंगी, कब मट्टी की खुशबू मेरी नाक तक पहुंचेगी, पेड़ों के मुरझाए पत्ते फिर से हरे होकर हवा के तेज़ झोंकों से झूमेंगे, कब आसमान में टिटहरी हल्ला मचाएगी और ज़मीन में मेंढक टर्राएंगे, कब सरसों के तेल में तले पकौड़े कढ़ाई से निकलेंगे और चाय की गर्म प्याली के साथ मिलकर महीनों की भूख मिटाएंगे और कब कजरी- सावनी के गीत कानों के रास्ते घुसकर आत्मा को शांति देंगे.

कुछ दिनों के सब्र और इंतज़ार के बाद आखिर मॉनसून ने दस्तक दे ही दी. उमड़-घुमड़ कर बादल आने लगे, कारी बदरिया ने सारा आकाश मानों अपनी आगोश में ले लिया, कौंधती बिजली और मेघ गर्जना से दिल भी दहला लेकिन फिर मूसलाधार बारिश नें महीनों की शिकायत दूर कर दी. आज मेरी सभी ख्वाहिशें पूरी हो गईं थीं और में जैसे कि आसमान में एक आज़ाद परिंदे की तरह उड़ रहा था.

उधर आसमान में बादल उफन रहे थे, इधर मेरी रसोई में चाय का पानी उबल रहा था. तेल खौल रहा था और पकौड़े तले जा रहे थे. उधर जंगल में मोर नाच रहा था, इधर मेरा मन मयूर भी नृत्य करने को बेचैन था. एक तरफ मिट्टी की सोंधी-सोंधी मादक महक पागल कर रही थी वहीं सरसों के तेल में बन रहे पकौड़ों की खुशबू ने भूख बेकाबू कर दी थी. किसी ने घर की खिड़की बंद कर दी, लेकिन मैंने खोल दी क्योंकि आज बौछारों को भी मेरे शयन कक्ष में बेरोकटोक घुस आने की खुली छूट थी. किसी जाते हुए राहगीर की चाल तेज़ हो गई थी ताकि वो ऐसी जगह पनाह ले ले जहां उसके कीमती वस्त्र बरसात के पानी से भीग न जाएं. लेकिन मेरे मिजाज़ में संगीत था, अल्हड़पन था और इसी कारण मैंने अपनी शर्ट तक उतार दी और बंद कमरे से निकल खुली छत पर जा बैठा जहां बरसात की हर एक बूंद मेरे तन-मन को भिगो रही थी. आखिर ये महीनों की प्यास थी और आज ही मैं इसे पूरी तरह बुझा लेना चाहता था.

खुली छत से मैनें क्या नहीं देखा. कहीं बच्चे सड़क पर लगे पानी में छपाक-छपाक करते देखे तो कुछ बच्चे रिक्शे में भीगते हुए स्कूल से घर को जाते देखे, रंग-बिरंगी छतरियों मे दुबके खुद को बारिश से बचाते हुए लोग देखे, ढेरों लोगों को एक बस स्टैंड में सिमटे देखा, कुछ लोगों को बरसाती पहनकर स्कूटर-मोटरसाइकिल पर जाते देखा, और सड़क पर जमा पानी को दूर तक उछालकर लोगों को भिगोकर रफू-चक्कर होती कारें भी देखीं-- कितना दिलकश था ये नज़ारा. लोगों के चेहरों पर परेशानी और उलझन थी मगर मन में खुशी भी थी. आखिर आज झमाझम बरसात जो रही थी.

मुझे आज महसूस हो रहा था कितना खूबसूरत होता है सावन की महीना और घनघोर बारिश का मज़ा. दूर-दूर तक फैले घनघनातै हुए काले बाद और उनके बीच चमकती बिजली-- मैं जी भर के बारिश में भीगा. काफी समय कुदरत के साथ बिताने के बाद आखिरकर मैं छत से उतर आया. घर आने के बाद भी बारिश घंटों चलती रही और मन को प्रसन्न करती रही.
समय काफी बीत गया था और आज अंधेरा भी जल्दी हो गया. खिड़की से बाहर झांककर देखा तो हैरान रह गया. सड़क पर वाहनों की जली बत्तियां देखकर महसूस कर रहा था कितना मुश्किल हो रहा होगा गाड़ी चलाना. वाहनों की संख्या भी बढ़ गई थी और सड़कों पर कारों, बसों और स्कूटरों की लंबी कतार खड़ी थी.

सभी परेशान लग रहे थे क्योंकि किसी को आगे बढ़ने का कहीं कोई रास्ता नहीं था. मेरा मन कचोटने लगा और मैंने सोचा इन लोगों का भी तो मन कर रहा होगा गर्म चाय पीने का, समोसे और पकौड़े खाने का और सावन के रंगीन गीत सुनने का. लेकिन सच्चाई यह थी कि ये सड़क पर फंसे दूसरे वाहनों का धुंआ खा रहे थे, बारिश की बूंदे पी रहे थे और सड़क पर हो रहा शोरगुल सुन रहे थे.

मैं कितना भाग्यशाली था जिसने आज बारिश का भरपूर मज़ा लूटा. लेकिन ऐसा सबके साथ नहीं था-- सड़क पर चल रहा हर आदमी एक कड़वी सच्चाई से रू-बरू हो रहा था. सड़कों पर दिख रही थी वाहनों की कभी न खत्म होती कतार और रेंग- रेंग कर धीमी गति से बढ़ती गाड़ियां. वाहनों की मद्धम चाल से लाखों की कीमत का हज़ारों लीटर पेट्रोल बर्बाद हो रहा था और उनके धुंए से वातावरण में ज़हर घुला जा रहा था. पर लोग मजबूर थे और जिनको परवाह करनी चाहिए उन्हें फिक्र कहां. अफसोस ये कि मेहनत की कमाई से खरीदा महंगा पेट्रोल जल गया, गाड़ी डिगी तक नहीं और लोग जहां के तहां खड़े रह गए. उधर सड़क पर घुटनों तक लगे पानी की वजह से कितने ही वाहन बंद हो गए थे और लोग उसी मैले पानी में उतरकर धक्का लगा रहे थे. अब ऐसे में भला किसे सुनाई देगी मेंढक की टर्र-टर्र. अभी तो आम आदमी ही टर्रा रहा था कि लो आज पहली ही बरसात में ऐसा हाल-- तौबा रे तौबा!

मन इस ख्याल से ही सिहर उठा कि सचमुच अगर एक शाम भी किसी के साथ ऐसा हो जाए तो बेचारा हट्टा-कट्टा आदमी भी तन और मन से बीमार नहीं पड़ेगा तो और क्या होगा. मुझे लगा किसी ने आपके शहर के विकास के नाम पर आपसे वोट लिए होंगे, कोई इस वायदे के साथ बड़का बाबू बना होगा कि वो देश और समाज की सेवा करने की नीयत रखता है... लेकिन सब गुम दिखे आज. गुम क्या दिखे सच मानिये तो आज की बारिश का असल लुत्फ तो वही ले रहे होंगे और हमारा-आपका क्या, हम तो दिन काट लेंगे और सब कुछ भुलाने का नाटक करते हुए कल फिर एक नई उम्मीद के साथ पानी से भरी इन सड़कों पर उतरेंगे.

सचमुच किसी की लापरवाही मेरे कष्टों का इतना बड़ा कारण भी बन सकती है ऐसा मैने शायद ही कभी सोचा था. बस इसी विचार से मेरा मन एक बार फिर व्याकुल हो गया. है कोई जो मेरी इस व्याकुलता को दूर करेगा!

मैं खबरिया चैनल देख रहा था और लोगों की परेशानी महसूस कर रहा था. सड़कों पर फंसे हजा़रों वाहनों और इंसानों के बीच मेरी निगाहें उन नेताओं को ढूंढ रही थीं जो चुनाव से पहले बड़े- बड़े बोल बोलते हैं, लंबी-चौड़ी बातें करते हैं और हसीन सपने दिखाते हैं. मेरी निगाहें उन अफसरों को भी ढूंढ रही थीं जो नौकरी का इंटरव्यू देते हुए समाज सेवा की बात करते हैं, अपने अधिकारों से बदलाव लाने की बात करते हैं और नागरिकों की सहुलियतों के बारे में कहते नहीं थकते. मेरी निगाहें पथरा गईं लेकिन ऐसा कोई दिखा नहीं. आज मेरा मन आश्वस्त हो गया कि नेता वोट के आगे की सोच ही नहीं पाते और अफसर सरकारी सुविधाओं के आगे बेबस हो जाते हैं. लेकिन यह भी सच्चाई है कि रात तो बीत ही जाएगी और कल का सवेरा एक नए कलेवर के साथ आएगा. कल नेताओं की नींद खुलेगी, मंत्री लीपापोती करेंगे, छींटाकशी करेंगे, कोई इसको तो कोई उसको दोषी ठहराएगा, तकलीफें दूर करने के लिए एक बार फिर से नए वादे किए जाएंगे, कमेटियां बनेंगी, अफसर तलब होंगे और न जाने क्या-क्या. इस बीच सड़कों का पानी धीरे- धीरे उतर चुका होगा, लोग फिर से अपने काम में जुट गए होंगे और हम सब फिर से इंतज़ार करेंगे अगली बरसात का... एक बार फिर से समस्या के उभरने का.

मुझे इंतज़ार है उस वक्त का जब मैं नहीं बल्कि ये नेता और अफसर व्याकुल होंगे और कसम लेंगे कि आम आदमी को इस तरह के हालात से दोबारा रू-बरू नहीं होना होगा. मुझे इंतज़ार है उन व्याकुल नेताओं, मंत्रियों और अफसरों को देखने का जो लोगों की तकलीफों से इतने व्याकुल हो जाएं कि घर पर रुक न सकें और फौरन बाहर आकर जनता के साथ साथ सड़क पर खड़े दिखें-- बाद में छींटाकशी और रिपोर्ट तैयार करते हुए नहीं.

आखिर बरसात का मौसम है, मौज-मस्ती का मौसम है. इसमें प्रेम है, भूख है, नादानी है, शोखी है... ऐसे में मेंढक को ही टर्र-टर्र करने दें, हम इंसानों के लिए तो ये बरसात की बूंदे सुकून लेकर आती हैं, आज उसी का आनंद लेने दें.

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1) https://apurvaopinion.blogspot.in/2017/07/monsoon-and-delhi-roads.html
Monsoon and Delhi roads

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उफ, ये सावन बीता जाए

March 24, 2016

आज बिरज में होली रे रसिया, होली रे रसिया

By APURVA RAI

THESE photographs were clicked while I had gone to Chandni Chowk market in Delhi ahead of Holi, the festival of colours celebrated with fervour in north India.

During my trip to the market I happened to witness this culture parade marking Holi festivities denoting Lord Krishna and his beloved Radha. Krishna and Radha, natives of Mathura, near Delhi, are known for their love, romance and dance-drama and colours of Holi make them all the more playful.

The culture parade depicted dance and romance of Radha- Krishna while playing Holi colours in Mathura/ Braj/ Vrindavan.

Young artists dancing to lovely Holi songs enthralled people present in the market. I could not resist and immediately clicked some pictures with my mobile. I am using Microsoft Lumia 532 mobile phone which has a 5mp rear (main) camera.

The dance and romance depicting Radha- Krishna are directly related to Holi festivities. 



Some of these pictures are here for you to taste love, dance, bonhomie and celebrations that this festival of colours is known for. I must admit that the picture quality has been enhanced on Adobe Photoshop.

होली रे रसिया. Pix APURVA RAI


आजा रसिया अब होरी खेलें, फ़ाग चढ़ चढ़ आयो
रंग ले अपने रंग मोहे सांवरिया, और रंग ना भायो ।।



होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

होली राधा-श्याम की और न होली कोय,
जो मन राचे प्रेम रंग फिर रंग चढ़े न कोय ।।




होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

माथे पे बिंदिया, नैनों में काजल सालो री,
नाक में नथनी और शीश पे चुनरी डालो री,
होली खेलन आया श्याम आज इसे रंग में बोरो री ।।


होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

नंदग्राम के जुरे हैं सखा सब, बरसाने की गोरी रे रसिया,
दौड़ मिल फाग परस्पर खेलें, कहि कहि होरी होरी रे रसिया।



होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

रंग-रंग राधा हुयीं कान्हा हुए गुलाल,
बृज क्षेत्र सब होली हुआ बृजवासी रचें धमाल ।।





होली रे रसिया. Pix APURVA RAI
होरी के रसिया होरी खेलें सखियाँ सब हर्षायो,
श्यामाश्याम रंग चढ़ गयो मोहे और रंग ना भायो ।।


होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

तन रंग डाला, मन रंग डाला, अबीर लगाओ जी भर के।
होली आई रे...
घूंघट लगाओ गोरी, मुखड़ा दिखाओ, दूर मत जाओ गोरी डर डर के।
होली आई रे...



होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

रंग दे चूनर अपने रंग में ही लहंगा गयो रंगायो,
भर भर मारे श्याम पिचकारी ऐसो आनंद छायो ।।


होली रे रसिया. Pix APURVA RAI
होरी खेलूँगी भयाम तोते नाय हारूँ
उड़त गुलाल लाल भए बादर, भर गडुआ रंग को डारूँ
होरी में तोय गोरी बनाऊँ लाला, पाग झगा तरी फारूँ
औचक छतियन हाथ चलाए, तोरे हाथ बाँधि गुलाल मारूँ।



होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

आज बिरज में होली रे रसिया, होली रे रसिया, बरजोरी रे रसिया।
उड़त गुलाल लाल भए बादर, केसर रंग में बोरी रे रसिया।
 



होली रे रसिया. Pix APURVA RAI

रंग गुलाल उड़ उड़ रहे पवन में, ऐसो रंग बरसायो
मन मोरा भी रंग दे सांवरिया, देख अब फागण आयो ।।
रंग दे चूनर अपने रंग में ही लहंगा गयो रंगायो
भर भर मारे श्याम पिचकारी ऐसो आनंद छायो ।।


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होली के रंग हज़ार हज़ार
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