September 24, 2010

उफ, ये सावन बीता जाए!



अपूर्व राय
गर्मी का महीना काटे नहीं कटता। सुबह होते ही घर से निकलना मुहाल। मां ने कहा बेटा अगर बहुत ज़रूरी हो तो ही बाहर निकलना और कहीं जाने से पहले पानी ज़रूर पी लेना।

पानी कितना ज़रूरी है ये गर्मी के मौसम में ही समझा। दिन भर पानी पीते रहे, दो-एक बार शर्बत भी पिया पर फिर भी प्यास नहीं बुझी। दो- दो, तीन- तीन बार नहाया फिर भी शरीर को ठंडक नहीं मिली। हर दिन- हर पल हाय पानी, हाय पानी !

पानी की ही चाहत में इंतज़ार होने लगता है मॉनसून का। जी करता है कोई जादू हो जाए और तुरंत बारिश हो जिससे चैन मिले।

महानगरों में रहने वाले हम लोग कितने बेसब्र और उतावले होते हैं। अब चाहे सुख- सुविधाओं की बात हो या फिर कुदरत की-- कोई करिश्मा हो जाए और सब कुछ तुरंत हासिल हो जाए ग्रीष्म ऋतु में मॉनसून का इंतज़ार भी कुछ इसी का नमूना है। हर नज़र मौसम विभाग पर रहती है। मॉनसून केरल में आया और खुशी की लहर दिल्ली में दौड़ गई। सबने चैन की सांस ली चलो वो दिन भी दूर नहीं जब दिल्ली में भी बरसेंगे बादल।

आखिर वक्त कट ही गया और राजधानी में भी मॉनसून ने दस्तक दे दी। शुरुआती दिन तो मज़े से कटे, लेकिन फिर शुरू हुई बरसात की बेकद्री। ऐसी बेकद्री कि मेरा दिल तार- तार हो गया। अब हर किसी को इंतज़ार है पानी थमने का-- किसी को कपड़े सुखाने की जगह नहीं मिल रही तो किसी को बाज़ार से सामान लाने में दिक्कत हो रही है। किसी के घर की छत में सीलन आ गई है तो किसी को सड़क पर भरे पानी से परेशानी हो गई।

कहां तो हर पल पानी का इंतज़ार और कहां ये आफत की बरसात शुक्र मनाइये इंद्र देव का निवास आकाश में है; कहीं धरती पर रहते होते तो न्यूज़ चैनलों और अख़बारों की सुर्खियां देखकर निश्चित ही बरसात को बेमियादी हड़ताल पर भेज देते।

दिल्ली हो या मुंबई, दो- चार दिन की बारिश ही सुर्खी बन जाती है। जगह- जगह जलभराव हुआ नहीं कि हर कोई बोलने लगा आसमान से बरसी आफत अब किसी को एक बार भी इंद्र देव का शुक्रिया अदा करने का ख्याल तक नहीं आया। महानगरों में बरसात के आते ही सड़कों पर पानी जमा हो जाना, सड़कें टूटना, हफ्ते भर की बारिश में नदियों का पानी कॉलोनियों में घुस आना सालाना प्रक्रिया बन गया है।

महानगरों में बसे लोगों ने साल भर नालियां गंदी कीं, सफाई पर ध्यान नहीं दिया तो इसमें मॉनसून का क्या दोष। गर्मियों में दिल्ली और यमुना के दर्शन कीजिये। ताज्जुब होगा कि जिस चौड़े से गढ्ढे को आप देख रहे हैं वो दरअसल एक पूज्य नदी है। अब साल भर इसकी देखरेख नहीं की गई तो इसमें मॉनसून का क्या दोष? सड़कें टूट गईं और गढ्ढे पड़ गए तो इसमें बारिश का क्या दोष? जब सड़क बन रही थी तो ठेकेदारों से नहीं पूछा निर्माण का राज़। दिल्ली में कुछ निश्चित जगहों पर साल दर साल बारिश का पानी जमा होता है। लेकिन साल भर अगर इस पर काबू पाने का प्रयास हो तो इसमें बारिश का क्या दोष?

बारिश के आते ही बांध भी टूटने लगते हैं। भ्रष्टाचार की नींव पर बने इन बांधों को टूटते हुए तो सबने देखा लेकिन भ्रष्टाचारियों को अगर किसी ने सज़ा नहीं दी तो इसमें मॉनसून का क्या दोष? साल भर वॉटर हार्वेस्टिंग की चर्चा होती हो और वक्त आने पर इसका असर दिखे तो इसमें बरसात का क्या दोष?

अब चाहे शहर की सड़कें टूटें चाहे नदियां उफान पर आएं या फिर भ्रष्टाचारी शान से सर उठाकर घूमें, मुझे क्या। मेरा दिल तो बरसात मात्र से बाग- बाग हो उठता है।

ये वही बरसात है जो साल में एक बार आती है और जिसके आते ही प्रकृति खिलखिला उठती है, पेड़-पौधे लहलहा उठते हैं। मैं साल भर गमलों में लगे पौधों को सींचता रहा। वो ज़िंदा तो रहे पर कभी मुस्कुराए नहीं। सावन की कुछ बूंदें क्या पड़ीं कि पौधों की मुस्कुराहट देखकर मन मयूर नाच उठा।

सावन जब झूम के आया तो ही झूलों की झलक देखने को मिली। पेड़ों की शाखों पर टंगे झूलों पर खिलखिलाते बच्चे और लोकगीत गुनगुनाती स्त्रियां। वाह! सावन के गीतों की बात ही निराली है। ऐसे में राग मल्हार अगर कान में पड़ जाए तो शाम सुहानी हो जाती है। कुछ नहीं तो सावन के रसीले फिल्मी गीतों का ही आनंद लीजिये। सचमुच एक गाने में ठीक ही कहा है, ‘तेरी दो टक्या दी नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाए

सावन का ही महीना है जो चाय की चुस्की और गर्म पकौड़ों के आनंद को दोगुना कर देता है। यही वो मौसम है जो साल में एक बार घेवर जैसी मिठाई भी लेकर आता है।

ये बरसात की रातें ही तो होती हैं जब झींगुर की रुकने वाली आवाज़ कानों को भेदती रहती है, तलैया से मेंढक के टर्राने की आवाज़ नींद को तोड़ती है और जुगनू राह दिखाते चलते हैं। खेतों में खड़े होकर दूर आसमान में चारों तरफ घिरी काली घटाएं और तेज़ चलती हवाएं किसका मन ताज़ा नहीं कर देतीं।
 
मन को बेइमान बनाती यही वो बरसात है जिसकी ठंडी हवाओं में प्रेमी- प्रेमिका का प्यार भी पनपता है। आकाश में घिरी काली बदरी, सावन की हल्की बूंदें और ठंडी- ठंडी हवाएं प्रेम की अग्नि जलाने को काफी हैं।

महानगरों में रहने वाले हम लोग अब भी अगर मॉनसून को समझें तो इसमें गलती किसकी है। मैं तो बस इतना जानता हूं, मेरा सावन बीता जाए। (26/08/2010)
बरसात पर मेरे अन्य ब्लॉग पढ़ने के क्लिक/ URL कॉपी करें:

1) https://apurvaopinion.blogspot.in/2017/07/monsoon-and-delhi-roads.html
Monsoon and Delhi roads!

2) http://apurvarai.blogspot.in/2016/08/blog-post.html
बरसात की वो शाम और मेरा व्याकुल मन

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