April 08, 2022

दूसरी बार, फिर योगी सरकार



By APURVA RAI / अपूर्व राय

यूं तो हमारे देश में बहुत से मेले लगते रहते हैं पर इन सब में सबसे ख़ास है चुनावी मेला. हर पांच साल में होने वाला संसद का चुनाव तो अहम होता ही है पर इन पांच सालों के बीच में भी अनेक राज्यों की विधान सभाओं का चुनाव देखने को मिल जाता है. मतलब यह कि चुनाव का सिलसिला थमता नहीं. और जब हर साल चुनाव होंगे तो नेता और जनता दोनों ही व्यस्त हो जाएंगे— नेता ता भाषणों में और जनता आपस की बहस में.

जब बात विधान सभा चुनावों की हो तो कुछ कुछ राज्यों पर ध्यान ज़्यादा जाता है. ऐसा शायद दे वजहें से होता है. पहला इसलिये कि कुछ राज्य हम सब पर कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में असर डालते हैं. दूसरा यह कि कुछ राज्यों के नेता चर्चा में ज़्यादा रहते हैं जिससे उन पर, उनकी पार्टी पर और उनके  राज्य पर नज़र बनी ही रहती है. उत्तर प्रदेश भी ऐसे ही राज्यों में से एक है जिसे चाहकर भी कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता.

उत्तर प्रदेश में इस साल फरवरी में चुनाव हुए और मार्च में नतीजे आए. चुनावी परिणाम कुछ के लिए खुशियां लेकर आए तो कुछ के सपने चकनाचूर कर दिए. चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की अभूतपूर्व जीत हुई और पिछले पांच साल से मुख्यमंत्री रहे योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर से सत्ता की कमान संभाल ली.

सहज नहीं है डगर

चुनाव में लगातार दूसरी जीत बीजेपी के लिए खुशियां तो लेकर आई ही है लेकिन साथ ही सबक का विषय भी है. पार्टी को इस साल 273 सीटें ज़रूर मिलीं पर 2017 के चुनावों के मुकाबले 50 सीटें कम प्राप्त हुईं. इसके अलावा कुछ मुस्लिम बाहुल्य इलाकों जैसे आज़मगढ़, रामपुर, शामली में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली. मतलब साफ है कि समाज के सभ लोग सरकार के साथ नहीं हैं और पार्टी को बहुतों का दिल जीतना अभी बाकी है. 

यूपी में बीजेपी का दोबारा से सत्ता में आने और योगी आदित्यनाथ के फिर से मुख्यमंत्री बनने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें जनता का पूरा समर्थन प्राप्त हुआ है. इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि विरोधी पक्ष इतना मज़बूत नहीं था कि सबका दिल जीत सके. अगर यह कहें कि बीजेपी को कमज़ोर विपक्ष का फायदा मिला तो यह गलत नहीं होगा.

चुनाव में जीत के दो मतलब हैं— एक तो यह कि जनता ने आप पर जो भरोसा दोहराया है जिसे कायम रखना ज़रूरी है. दूसरा यह कि आप अपने वादों और ज़िम्मेदारियों को पहले से अधिक निष्ठा से पूरा करेंगे. कहते हैं कि सत्ता का अलग ही सुख होता है जो आपको रास्ते से भटकाने के लिए काफी है. लेकिन वही सत्ताधारी सफल होता है जो सत्ता के मद से दूर रहकर अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता देता है. 

योगी 2.0 का लक्ष्य साफ है कि उसे पहले से ज़्यादा मेहनत करनी है क्योंकि जनता की उम्मीदें काफी हैं और विपक्ष आगे के लिए चौकन्ना है.

उत्तर प्रदेश में बनी नई-नवेली सरकार को ढेरों चुनौतियों के बीच काम करना होगा और अगले पांच सालों में ठोस नतीजे सामने रखने ही होंगे. वैसे भी बीजेपी और सीएम योगीनाथ अपने हिंदुत्व एजेंडा के लिए अधिक जाने जाते हैं. पर इस सत्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि हिंदू या फिर धर्म की राजनीति आपको बहुत दूर तक नहीं ले जाती. और ऐसा होना भी नहीं चाहिए. धर्म निर्पेक्ष देश में सरकार का काम सभी धर्नों का सम्मान करना है और सभी को समान अवसार प्रदान करना उसका दायित्व बनता है. सरकार वही सफल होती है जो अपनी नीतियों से लोगों में भाईचारे को बढ़ावा दे न कि मज़हब के आधार पर लोगों के बीच दूरियां बढ़ाए.  

धर्म की राजनीति बीजेपी के दामन में सबसे बड़ा दाग है जिसे, मेरे ख्याल से, दूर करना उसकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. मज़हबी फासलों के कम करके अगर सरकार जातिवाद को ख़त्म करने की दिशा में कुछ कदम उठाती है तो बहुत से लोग इसका स्वागत करेंगे. मेरे ख़्याल से. 

क्या करें, कैसे करें

अब जबकि योगी सरकार 2.0 सत्ता में आ चुकी है और काम भी शुरू कर दिया है तो, मेरे ख़्याल से, उसे कुछ मुद्दों पर अधिक ध्यान देना होगा.

सबसे पहले तो ज़रूरी है सरकारी कर्मचारियों में काम के प्रति सजगता. लोग अक्सर कह देते हैं कि सरकारी नौकरी कर लो उसके बाद तो मौज है. हालांकि सरकारी सेवा में कार्यरत लोग इस पर विरोध करंगे पर काफी हद तक ऐसी धारणा सत्य है. सरकार को इस दृष्टिकोण को पूरे तरीके से बदलना होगा. वैसे कुछ विभाग ऐसे हैं जहां काम में कोतीही नहीं होती लेकिन इसके बावजूद ऐसे बहुत से दफ्तर हैं जहां मनमर्ज़ी चलती है.

जब भी कोई नई सरकार बनती है तो मंत्री लोग अफ्सरों और दूसरे कर्मचारियों को सही वक्त पर ड्यूटी पर आने और काम को ज़िम्मेदारी से करने की हिदायत जारी कर देते हैं. पहली बात कि ऐसा होता ही क्यों है. दूसरा ये कि कुछ दिन तो ठीक-ठाक चलता है पर उसके बाद फिर वही सब. दरअसल, अगर मंत्री खुद भी दफ्तर में अधिक समय दें और काम का ठीक से निरीक्षण करें तो बहुत कुछ अपने-आप ही दुरुस्त हो जाएगा. इसके लिए मंत्रियों को चुनावी रैलियों और अन्य तरह के गैर-ज़रूरी दौरों से बचने की ज़रूरत है. ज़ाहिर बाद है कि 'वर्क कल्चर' ऊपर से नीचे की तरफ प्रवाहित होता है.

विकास का मुद्दा

अब जबकि योगी सरकार 2.0 सत्ता में आ चुकी है और काम भी शुरू कर दिया है तो, मेरे ख़्याल से, उसे कुछ मुद्दों पर अधिक ध्यान देना होगा.

इन दिनों विकास की बात करना पार्टियों और नेताओं के लिए आम बात हो गई है पर कोई भी विकास की स्पष्ट रूपरेखा नहीं खींचता. सही मायनों में विकास तभी हो सकता है जब दूरगामी परियोजनाएं बनें जिनसे जन साधारण का जीवल सहज हो और रहन-सहन का स्तर बेहतर हो सके. 


विकास को लेकर ही पार्टियों में आपसी खींचतान भी बहुत देखने को मिलती है. एक दल अपने कामों को गिनाएगा और दूसरा दल अपने कामों को. यह मैंने किया- तूने क्या किया का रवैया खत्म करने की ज़रूरत है और परियोजनाओं को दलगत राजनीति से अलग करके राज्य की परियोजनाओं को रूप में देखा जाना आवश्यक है. मेरे ख़्याल से सरकार किसी भी पार्टी की हो उद्देश्य जन कल्याण ही होता है, चाहे किसी भी नाम से हो या किसी भी रूप में हो. फिर मेरा नाम-तेरा नाम की रीजनति क्यों? ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि विकास से जुड़ी योजनाएं सरकार बनाए और उनको लागू करने का कार्य एक स्वतंत्र कमेटी देखे जिसके सामने कार्य को पूरा करने का लक्ष्य हो भले ही इस बीच सरकार क्यों न बदल जाए.

आखिर जन-कल्याण से जुड़े मुद्दे क्या हैं—मेडिकल सुविधा, शिक्षा, कृषि, उद्योग, व्यापार, रोज़गार, यातायात आदि. अब तक बनी सभी सरकारें इन्हीं मुद्दों पर काम करती आई हैं परंतु फिर संतोषजनक नतीजे नहीं मिले हैं. मतलब साफ है कि कहीं न कहीं इच्छा शक्ति और काम करने के तरीके में कमी होगी. मूल विषय वही रहते हैं लेकिन अगर काम के प्रति रवैया बदला जाए तो वेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं. 

अगर राजनीतिक इच्छा शक्ति है और काम के प्रति गंभीरता है तो पांच साल का वक्त कम नहीं होता किसी काम को मुकम्मल अंजाम देने के लिए. फिर क्यों न इन्ही कार्यों को थोड़ा बहतर तरीके से किया जाए जिससे मनचाहे परिणाम मिलें और खुद को संतोष व जनता को खुशी प्राप्त हो.

शिक्षा: हम सबका भविष्य इसी बात पर निर्भर करता है कि आने लाली पीढ़ी कितनी काबिल है और कितनी सजग है. इसके लिए सशक्त, मज़बूत और आधुनिक शिक्षा प्रणाली सबसे ज़रूरी है. हम लोग अपने बच्चों को कॉन्वेंट और पब्लिक स्कूल में पढ़ाना पसंद करते हैं. हम लोगों में नेता, मंत्री और सरकारी पदाधिकारी भी शामिल हैं. आखिर हम अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में क्यों नहीं भेजना चाहते. ज़ाहिर है कि इन स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई का स्तर वो नहीं है जो हम अपने बच्चों को देना चाहते हैं. सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूल बहुत महंगे हैं लोकिन फिर भई वहां दाखिले की होड़ लगी रहती है.

सरकारी स्कूलों में सुधार की बात हर बार होती है पर कुछ होता नहीं. तो क्यों न सरकार तय करे कि हर साल हर ज़िले के दो स्कूलों को इस स्तर पर पहुंचाएगी कि वो प्राइवेट स्कूलों को टक्कर देंगे. शुरुआत भले ही छोटी हो लेकिन असरदार होनी चाहिए.

इसके अलावा पांच सालों के अंदर कम से कम चार विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने की दिशा में काम हो. इनका स्तर ऐसा किया जाए कि देश के दूसरे भाग से बच्चे दाखिला लेने यहां आएं.

शिक्षण संस्थानों में सुधार के लिए पहले दिन से ही एक्सपर्ट/ मॉनिटरिंग कमेटी का गठन किया जाए जिससे मनचाहे नतीजे मिल सकें और विषेशज्ञों के अनुभव का लाभ भी मिल सके. 

पांच साल, पांच ज़िले: विकास की गति को आगे बढ़ाने के लिए सरकार प्रदेश के पांच सबसे विकसित और पांच सबसे पिछड़े ज़िलों को सर्वप्रथम चिन्हित करे. लक्ष्य हो कि पांच सालों में सबसे विकसित ज़िले अथवा शहर राष्ट्रीय स्तर के बनए जाएं जहां आधुनिकीकरण की कोई कसर न छूटे. सरकार को जीवन स्तर के कुछ पैमाने तय करने होंगे और एक-एक करके इन पांच ज़िलों का स्तर ऊपर लाना होगा. काम ऐसा होलकि लोग खुद महसूस करें न कि नेताओं को काम गिनाना पड़े.

इसके अलावा पांच सबसे पिछड़े ज़िलों का स्तर ऐसा कर दिया जाए कि लोग गर्व कर सकें कि हम वहां के निवासी हैं और हमें किसी चीज़ की कमी नहीं है. इन ज़िलों में बेहतर तरीके सा काम करने वाला अस्पताल, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, बज़ार, अच्छे स्कूल-कॉलेज, बैंक, पुलिस व्यवस्था आदि हों जिनसे किसी व्यक्ति का रोज़मर्रा का जीवन सरल बनता है. 

प्रशासन अगर चाह ले तो पांच सालों मं यह कार्य नामुनकिन नहीं. 

पर्यटन वाले शहर: परिवार के साथ घूमने जाना अब एक आम बात हो चली है. खुशकिस्मती की बात यह है कि उत्तर प्रदेश में पर्यटन की ढेर सारी संभावनाएं हैं. सरकारो चाहिये कि पांच सालों में कम से कम दस ऐसे शहरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाएं मुहैया करवाए जो पर्यटन की द्रष्टि से महत्पवूर्ण हैं. इन शहरों में पर्यटन वाली जगहों का अच्छा रख-रखाव हो, अच्छे होटल हों, सुगम यातायात हो, शॉपिंग के लिए अनूठी दुकानें और मार्केट बने, बैंक, नृत्य/संगीत और खाने-पीने की बढ़िया व्यवस्था हो. शहरों की ख़ासियत के अनुसार पर्यटन के नए-नए तरीके अपनाकर घुमक्कड़ों को आकर्षित किया जा सकता है.

घूमने आने वाले लोगों को महसूस होना चाहिये कि उन्होंने जो भी खर्च किया है वह बेकार नहीं गया. बढ़िया और विकसित पर्यटन न केवल रोज़गार उत्पन्न करता है बल्कि सरकार के लिए बड़े राजस्व का ज़रिया भी होता है, यह बात नहीं भूलनी चाहिए. 

मेडिकल व्यवस्था: पिछले दो सालों से कोविड के आतंक ने एक बात साफ कर दी है कि सरकार चाहे किसी बने, मुख्यमंत्री चाहे कोई हो बीमारी से कोई अछूता नहीं. कोविड ने साबित कर दिया कि हमारी चिकित्सा व्यवस्था में कितनी खामियां हैं. प्रशासन के लिए सबसे बड़ा सबक यही है कि राज्य में उत्तम मेडिकल सेवा सुनिश्चित करे. अब वो वक्त नहीं कि सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें कर दीं, बजट पास कर दिया और रुपए डकार गए. 

सरकारी अस्पतालों की क्या स्थिति है यह कहने की ज़रूरत नहीं. ओपीडी के बाहर लाइन लगी है, हज़ारों मरीज़ों के बीच डॉक्टर बेचारा उलझा है, लोग टेस्ट कराने इधर से उधर भटक रहे हैं, संगीन बीमारियों के लिए पचास दिक्कतें, सिफारिश और पहुंच वालों के लिए सेवाएं और आम आदमी के लिए धक्का-मुक्की वगैरह-वगैरह. उधर प्राइवेट अस्पतालों की अपनी ही कहानी है. इधर मरीज़ भर्ती हुआ उधर कैश डिपॉज़ट भी शुरू. प्राइवेट अस्पताल सुविधा के नाम पर जिस तरह से रुपया वसूलते हैं कि दिल मुंह को आ जाता है. इनके लिए इलाज और मुनाफा पर्याय हैं और इसके लिए निजी अस्पताल क्या कुछ नहीं कर गुज़रते.

पांच साल में सरकार इतना तो कर ही सकती है कि प्रदेश के दो मौजूदा बड़े सरकारी अस्पतालों को इस स्तर पर ला खड़ा करे कि किसी को भी इलाज के लिए दिल्ली/ मुंबई का रुख न करना पड़े. इसके अलावा चुनिंदा ज़िला अस्पतालों को भी इस स्तर का बनाया जा सकता है कि आसपास के लोग अच्छा इलाज प्राप्त कर सकें. इस कार्य के लिए कुछ मेडिकल मैनेजर्स की टीम बनाकर सुगमता से किया जा सकता है. अब वक्त आ गया है कि हर क्षेत्र में प्रोफेशनल मैनेजमेंट दिखाई पड़ना चाहिए. 

व्यापारिक इंटरचेंज: उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है. बहुत सा औद्योगिक और कृषि उत्पाद रेल और सड़क मार्ग के ज़रिये एक जगह से दूसरी जगह जाता है. ज़ाहिर है सफर लंबा होता है, समय लगता है, खर्च आता है और माल ले जाने और लाने वाले श्रमिकों के लिए थकान भरा भी होता है.

मेरे ख़्याल से एक ऐसा तरीका क्यों न निकाला जाए कि सामान की आवाजाही आसान हो जाए, खर्च भी कुछ कम हो और श्रमिकों की थकान भी घटे. पूरे प्रदेश को व्यापारिक दृष्टि से तीन हिस्सों में बांट सकते हैं— पूर्वी, मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश. इसमें मध्य उत्तर प्रदेश इंटरचेंज का काम करेगा जहां ट्रक और ट्रेन दोनों की ही सुविधा उपलब्ध होगी. अगर किसी को अपना सामान पश्चिम यूपी से सुदूर पूर्व भेजना है तो वह अपना ट्रक इंटरचेंज तक ही भेजे जहां से पूर्व की ओर जाने वाले वाहन उसे गंतव्य तक पहुंचा देंगे. इंटरचेज से वही ट्रक ज़रूरत का दूसरा सामान लेकर पश्चिमी भाग की ओर वापस आ जाएगा.

इस काम को कई ट्रांसपोर्ट कंपनियां अंजाम दे सकती हैं. ज़ाहिर है कि जब श्रमिकों को थकान कम होगी तो सड़क हादसों में भी कमी आएगी. 

उर्जा के स्रोत: आज के  मय में बिजली की खपत कई गुना बढ़ गई है. इन दिनों हम कल्पना भी नहींकर सकते कि दिन भर या रात भर बिजली गुल रहे. सरकार के सामने एक बड़ा कार्य है कि वह ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर विशेष ध्यान दे. इसके लिए सौर ऊर्जा उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम हो सकती है. गांवों में जहां खुले मैदान हैं, छोटे शहरों   जहां छोटे मकान हैं वहां घर-घर सोलर पैनल का प्रसार किया जाना चाहिए. ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों में सोलर पैनल की अनेकों एजेंसिया खोलने पर ज़ोर हो और इससे जुड़ी जानकारी बड़े पैमाने पर उपवब्ध कराना योगी 2.0 का प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए. सरकार सोलर पैनल के निर्माण को लिए भी उद्योग को बढ़ावा दे जिससे ये जन-जन तक पहुंच सकें. 

खेल और खिलाड़ियों को बढ़ावा: सरकार में स्पोर्ट्स का अलग ही मंत्रालय होता है. प्रदेश में कई स्टोडियम भी हैं. सरकार स्पोर्ट्स के नाम पर ढेरों रुपया भी खर्चती है. पर इन सबके बावजूद खेलों में हमारा वो स्तर नहीं जो हम चाहते हैं. जो सफल खिलाड़ी हैं वो अपनी व्यवस्था करके बड़ी स्पर्धाओं में हिस्सा लेते हैं पर मझोले और छोटे खिलाड़ी ऐसा नहीं कर पाने और पूछे रह जाते हैं. टैलेंट की कमी नहीं है पर उसे सही दिशा दिखाने और सही राह पर ले जाने वाली व्यवस्था की कमी है. सरकार को तय करना होगा कि कौन से खेल प्रदेश में विकसित हैं, कौन से खिलाड़ी इनमें आगे हैं और उन्हें किस तरह की ट्रेनिंग की ज़रूरत है. अगर उचित दिशा में प्रयास किया जाए और लक्ष्य बहनाकर आगे बढ़ें तो ऐसा नहीं कि पांच सालों में पांच ऐसे खिलाड़ी प्रदेश से नहीं निकल सकते जो देश का नाम रोशन करने में किसी से कम हों.

मुद्दे और भी हैं जैसे सुरक्षा-व्यवस्था, महिलाओं का सम्मान, खेती और उद्योग को निरंतर बढ़ावा जिससे उत्पादन और व्यापार में वृद्धि हो, घूसखोरी में कमी आदि.

वैसे प्रशासनिक दिक्कतें, बजट, नकारात्मकता हमारे काम में बाधा पहुंचाती हैं पर सरकार को यह निश्चय करना होगा कि उसके सामने कुछ लक्ष्य हैं जिन्हे हर हाल में प्राप्त करना ही है. काम किया जाए तो पांच वर्ष का समय कम नहीं होता. और काम करने चलो तो पांच वर्ष कब बीत गए पता भी नहीं चलता.

इसलिये बेहतर होगा कि योगी 2.0 को जो मौका मिला है वह किसी भी तरह से व्यर्थ न जाए. सरकार अगर प्रोफेशनल तरीके से काम करती है तो बेहतर नतीजे पाना मुश्किल नहीं होगा. और अगर ऐसा हो गया तो योगी 3.0 भी असंभव नहीं.

वरना... मेरे ख़्याल से, आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं !