September 15, 2018

गणपति बप्पा मोरया-- अगले बरस तू जल्दी आना



अपूर्व राय
इस साल एक बार फिर से गणेश चतुर्थी का पर्व आ गया है और हर तरफ इसका उत्साह दिखाई पड़ रहा है.

क्यों मनाई जाती है
गणेश चतुर्थी हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है और भारतवर्ष में यह प्रत्येक वर्ष बहुत ही अधिक उल्लास और धूम-धाम से मनाया जाता है. यह पर्व 10 दिनों तक चलता है जो गणेश चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है. दस दिनों के इस पर्व की पूरी अवधि को गणेश महोत्सव के रूप में जाना जाता है. परंपरा के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की मूर्ति घर लाई जाती है और परिवार के सभी सदस्य इसकी आराधना करते हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति की प्रतिमा को नदी अथवा समुद्र में विसर्जित कर इस संदेश के साथ विदाई दी जाती है कि अगले साल गणपति फिर से हमारे घर शीघ्र पधारें और जीवन में मंगल करें.  

कब मानाया जाता है
पुराणों के अनुसार भाद्रपद यानी कि भादो महीने की शुक्‍ल पक्ष के चौथे दिन (चतुर्थी) को भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान गणेश का जन्‍म हुआ था. उनके जन्‍मदिवस को ही गणेश चतुर्थी कहा जाता है. अंग्रेज़ी (ग्रेगोरियन) कैलेंडर के अनुसार यह त्‍योहार हर साल अगस्‍त या सितंबर के महीने में पड़ता है. गणेशजी की सवारी मूषक (चूहा) और प्रिय भोग मोदक (लड्डू) है.
मोदक ही क्यों: पुराणों में गणपति को मोदक अथवा लड्डू चढ़ाने का ही वर्णन है. मोदक का अर्थ होता है आनंद (खुशी) और भगवान गणेश को हमेशा खुश रहने वाला माना जाता है. इसी वजह से उन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है. मोदक को ज्ञान का प्रतीक भी माना जाता है और भगवान गणेश को ज्ञान का देवता भी माना जाता है. इसलिए भी उनको मोदक का भोग लगता है.
क्या है महत्व
हिन्‍दू धर्म में भगवान गणेश का न केवल विशेष स्‍थान है बल्कि उन्हें सर्वोपरि देवता भी माना जाता है. भगवान गणेश को तीव्र बुद्धि और कौशल का प्रतीक मानते हैं तथा उन्हें विघ्नहर्ता के रूप में भी जाना जाता है. अपने माता-पिता के प्रति उनकी भक्ति की मिसाल हर जगह दी जाती है. एक कथा के अनुसार एक बार सभी देवता अपने-अपने वाहनों की परीक्षा के लिये एकत्रित हुए और उन्हें पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने को कहा गया. गणेशजी इस परीक्षा में कुछ असमंजस में दिखे क्योंकि चूहे जैस छोटे से जीव के साथ पूरे ब्रह्मांड का पूरा चक्कर लगाकर सर्वप्रथम आना मुश्किल कार्य था. कुछ ही देर में प्रतिस्पर्धा आरंभ हुई और सभी देवतागण अपनी-अपनी सवारी पर बैठ तेज़ी से निकल पड़े परन्तु गणेशजी के मन मस्तिष्क में एक अन्य ही ख्याल आया. उन्होंने पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाने की बजाय अपने माता-पिता (शिव-पार्वती) का चक्कर लगाया और वापस आकर खड़े हो गए. जब उनसे पूछा गया कि उन्हों ऐसा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि उनके लिए तो उनके माता-पिता ही संपूर्ण ब्रह्मांड है. गणेशजी के जवाब और उनके कृत से सभी देवतागण अभिभूत रह गए और उन्हें इस प्रतिस्पर्धा में विजयी घोषित किया गया.

हर हिंदू परिवार जब भी कोई नया कार्य आरंभ करता है अथवा कोई भी शुभ कार्य का आरंभ करता है तो सबसे पहले श्रीगणेश का नाम लेकर ही शुरू करता है.

अन्य शब्दों में कहें तो कोई भी पूजा, हवन, शादी-विवाह या अन्य मांगलिक कार्य गणपति वंदना के बिना अधूरा है. गणपति किसी भी नए काम का ऐसा पर्याय बन गए हैं कि हर हिंदू इसकी शुरुआत करने से पहले 'आइये श्रीगणेश किया जाए' ही कहता है.

हिन्‍दुओं में गणेश वंदना के साथ ही किसी नए काम की शुरुआत होती है. यही वजह है कि गणेश चतुर्थी यानी कि भगवान गणेश के जन्‍मदिवस को देश भर में पूरे विधि-विधान और उत्‍साह के साथ मनाया जाता है. महारष्‍ट्र और मध्‍य प्रदेश में तो इस पर्व की छटा देखते ही बनती है.
कहते हैं जो भी बप्‍पा की दिल से पूजा करता है उसके सारे  कष्टों का नाश होता है। गणेश जी की पूजा करने से विघ्नों का नाश होता है। संपूर्ण गणेश महोत्सव के दौरान आरती और भजन एवं गणेश वंदना का खास महत्‍व होता है। गणेश महोत्सव की पूरी अवधि के दौरान भगवान अपने भक्तों के बीच ही निवास करते हैं. कहते हैं कि इन दस दिनों में कभी भी श्रद्धा और पवित्रता से किये गए उपायों से मन-वांछित फल की प्राप्ति होती है और भक्तों का जीवन सफल होता है.
हम आपकी सुविधा के लिए गणेश आरती प्रस्तुत कर रहे
हैं: 
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।


अनेक हैं नाम
लम्बोदर और महाकाय के रूप में गणेशजी समृद्धि और खुशहाली के देवता माने जाते हैं. गणनायक के रूप में वे वीर सैनिकों के सेनापति हैं. सनातन धर्म में मिट्टी और गोबर के गणेश शुद्धता के प्रतीक हैं. बच्चों के प्रिय बाल गणेश के रूप में भी उनका विशेष महत्व है. महाराष्ट्र में वो गणपति बप्पा के नाम से प्रचलित हैं. भगवान गणेश का जन्म दोपहर में हुआ था, इसलिए इनकी पूजा दोपहर में होती है. गणेश महोत्सव के दौरान भी भगवान गणेश की पूजा दोपहर में ही करने का विधान है. इस पूजा में गणपति को 21 लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. वैसे सामान्य दिनों में गणपति की पूजा प्रात:काल में की जाती है.
 वैसे गणेश जी के 108 नाम हैं जिसे गणेश नामालसी भी कहा जाता है. सभी नामों की सूचि, अर्थ सहित, नीते दी जा रही है:
1) बालगणपति: सबसे प्रिय बालक, 2) भालचन्द्र: जिसके मस्तक पर चंद्रमा हो, 3) बुद्धिनाथ: बुद्धि के भगवान, 4) धूम्रवर्ण: धुंए को उड़ाने वाला, 5) एकाक्षर: एकल अक्षर, 6) एकदन्त: एक दांत वाले, 7) गजकर्ण: हाथी की तरह आंखें वाला, 8) गजानन: हाथी के मुँख वाले भगवान, 9) गजवक्र: हाथी की सूंड वाला, 10) गजवक्त्र: जिसका हाथी की तरह मुँह है, 11) गणाध्यक्ष: सभी जणों का मालिक, 12) गणपति: सभी गणों के मालिक, 13) गौरीसुत: माता गौरी का बेटा, 14) लम्बकर्ण: बड़े कान वाले देव, 15) लम्बोदर: बड़े पेट वाले, 16) महाबल: अत्यधिक बलशाली वाले प्रभु, 17) महागणपति: देवातिदेव, 18) महेश्वर: सारे ब्रह्मांड के भगवान, 19) मंगलमूर्त्ति: सभी शुभ कार्य के देव, 20) मूषकवाहन: जिसका सारथी मूषक है, 21) निदीश्वरम: धन और निधि के दाता, 22) प्रथमेश्वर: सब के बीच प्रथम आने वाला, 23) शूपकर्ण: बड़े कान वाले देव, 24) शुभम: सभी शुभ कार्यों के प्रभु, 25) सिद्धिदाता: इच्छाओं और अवसरों के स्वामी, 26) सिद्दिविनायक: सफलता के स्वामी, 27) सुरेश्वरम: देवों के देव, 28) वक्रतुण्ड: घुमावदार सूंड, 29) अखूरथ: जिसका सारथी मूषक है, 30) अलम्पता: अनन्त देव, 31) अमित: अतुलनीय प्रभु, 32) अनन्तचिदरुपम: अनंत और व्यक्ति चेतना. 33) अवनीश: पूरे विश्व के प्रभु, 34) अविघ्न: बाधाओं को हरने वाले, 35) भीम: विशाल. 36) भूपति: धरती के मालिक, 37) भुवनपति: देवों के देव, 38) बुद्धिप्रिय: ज्ञान के दाता, 39) बुद्धिविधाता: बुद्धि के मालिक, 40) चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले, 41) देवादेव: सभी भगवान में सर्वोपरी, 42) देवांतकनाशकारी: बुराइयों और असुरों के विनाशक, 43) देवव्रत: सबकी तपस्या स्वीकार करने वाले, 44) देवेन्द्राशिक: सभी देवताओं की रक्षा करने वाले, 45) धार्मिक: दान देने वाला, 46) दूर्जा: अपराजित देव, 47) द्वैमातुर: दो माताओं वाले, 48) एकदंष्ट्र: एक दांत वाले, 49) ईशानपुत्र: भगवान शिव के बेटे, 50) गदाधर: जिसका हथियार गदा है, 51) गणाध्यक्षिण: सभी पिंडों के नेता, 52) गुणिन: जो सभी गुणों क ज्ञानी,
53) हरिद्र: स्वर्ण के रंग वाला, 54) हेरम्ब: माँ का प्रिय पुत्र, 55) कपिल: पीले भूरे रंग वाला, 56) कवीश: कवियों के स्वामी, 57) कीर्त्ति: यश के स्वामी, 58) कृपाकर: कृपा करने वाले, 59) कृष्णपिंगाश: पीली भूरी आंखवाले, 60) क्षेमंकरी: माफी प्रदान करने वाला, 61) क्षिप्रा: आराधना के योग्य, 62) मनोमय: दिल जीतने वाले, 63) मृत्युंजय: मौत को हरने वाले, 64) मूढ़ाकरम: जिन्में खुशी का वास होता है, 65) मुक्तिदायी: शाश्वत आनंद के दाता, 66) नादप्रतिष्ठित: जिसे संगीत से प्यार हो, 67) नमस्थेतु: सभी बुराइयों और पापों पर विजय प्राप्त करने वाले, 68) नन्दन: भगवान शिव का बेटा, 69) सिद्धांथ: सफलता और उपलब्धियों की गुरु, 70) पीताम्बर: पीले वस्त्र धारण करने वाला, 71) प्रमोद: आनंद, 72) पुरुष: अद्भुत व्यक्तित्व, 73) रक्त: लाल रंग के शरीर वाला, 74) रुद्रप्रिय: भगवान शिव के चहीते, 75) सर्वदेवात्मन: सभी स्वर्गीय प्रसाद के स्वीकार्ता, 76) सर्वसिद्धांत: कौशल और बुद्धि के दाता, 77) सर्वात्मन: ब्रह्मांड की रक्षा करने वाला, 78) ओमकार: ओम के आकार वाला, 79) . शशिवर्णम: जिसका रंग चंद्रमा को भाता हो, 80) शुभगुणकानन: जो सभी गुण के गुरु हैं, 81) श्वेता: जो सफेद रंग के रूप में शुद्ध है, 82) सिद्धिप्रिय: इच्छापूर्ति वाले, 83) स्कन्दपूर्वज: भगवान कार्तिकेय के भाई, 84) सुमुख: शुभ मुख वाले, 85) स्वरुप: सौंदर्य के प्रेमी, 86) तरुण: जिसकी कोई आयु न हो, 87) उद्दण्ड: शरारती, 88) उमापुत्र: पार्वती के बेटे, 89) वरगणपति: अवसरों के स्वामी, 90) वरप्रद: इच्छाओं और अवसरों के अनुदाता, 91) वरदविनायक: सफलता के स्वामी, 92) वीरगणपति: वीर प्रभु, 93) विद्यावारिधि: बुद्धि की देव, 94) विघ्नहर: बाधाओं को दूर करने वाले, 95) विघ्नहर्त्ता: बुद्धि की देव, 96) विघ्नविनाशन: बाधाओं का अंत करने वाले, 97) विघ्नराज: सभी बाधाओं के मालिक, 98) विघ्नराजेन्द्र: सभी बाधाओं के भगवान, 99) विघ्नविनाशाय: सभी बाधाओं का नाश करने वाला, 100) विघ्नेश्वर: सभी बाधाओं के हरने वाले भगवान, 101) विकट: अत्यंत विशाल, 102) विनायक: सब का भगवान, 103) विश्वमुख: ब्रह्मांड के गुरु, 104) विश्वराजा: संसार के स्वामी, 105) यज्ञकाय: सभी पवित्र और बलि को स्वीकार करने वाला, 106) यशस्कर: प्रसिद्धि और भाग्य के स्वामी, 107) यशस्विन: सबसे प्यारे और लोकप्रिय देव, 108) योगाधिप: धयान के प्रभु
Photo: Apurva Rai
 कलाकारों के भी हैं प्रिय
सभी देवी-देवताओं में गणेश भगवान सबसे लोकप्रय माने जाते हैं. गणेशजी को लेकर ढेरों गीत लिखे गए हैं, मूर्तियां बनाई गई हैं, तस्वीरें और चित्र बनाए गए हैं. जो लोग उनकी तस्वीर या रेखाचित्र नहीं बना सकते ऐसे ही तमाम लोगों ने अपने कैमरे में उनकी तस्वीरें उतार लीं. गणेश जी की प्रतिमाओं का कलेक्शन अनेक घरों में देखा जा सकता है. उनकी फोटो खींचकर लोग नुमाइश भी लगाते हैं.

गणपति की छवि और प्रतिमाएं सदा से मुझे भी अपनी ओर खींचती रही हैं. अकसर कोई आकर्षक छवि दिख जाती है लेकिन कैंमरा साथ न होने के कारण तस्वीर न ले पाने का अफसोस लंबे समय तक मन को कचोटता रहा है.
बहरहाल अब मोबाइल फोन ने इस काम को बेहद आसान कर दिया है.  यहां दी गई तस्वीरें मैने अपने मोबाइल फोन के कैमरे से ही उतारी हैं. फोटोग्राफी के लिहाज़ से ये तस्वीरें भले ही उम्दा न हों लेकिन मन को संतुष्टि देती हैं. हां, कुछ तस्वीरों में फोटोशॉप के ज़रिये कुछ परिवर्तन कर उनकी खूबसूरती बढ़ाने का प्रयास ज़रूर किया है मैंने.

इस लेख में कुछ रेखाचित्र भी दिए गए हैं जो मेरे नहीं है और इन्हें विभिन्न जगहों से एकत्रित किया गया है.


गणपति की मशहूर मराठी आरती का आनंद लें. देखें वीडियो:






May 17, 2018

श्रीपत राय ने युवा प्रतिभाओं को मंच दिया



विनय कुमार राय

हिंदी साहित्य के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का निधन अक्टूबर 1936 में हुआ था. पिता की मृत्यु के तुरंत बाद ही उनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीपत राय ने विरासत में मिली लेखन सामग्री, सरस्वती प्रेस और मासिक पत्रिका 'हंस' का कार्यभार सिर्फ संभाला बल्कि उसे आसमान की ऊंचाइयों तक उठाया.

पिता के असमय स्वर्गवास के वक्त श्रीपत अपनी पढ़ाई तक पूरी नहीं कर सके थे और इलाहाबद विश्वविद्यालय में स्नातक (बी..) के छात्र थे. एक नवयुवक के लिए यह किसी चुनौती से कम था बल्कि एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी भी थी और वो इसमें अव्वल नंबरों से उत्तीर्ण हुए.

पिता से विरासत में मिली पत्रिका 'हंस' का संपादन कोई आसान काम नहीं था लेकिन श्रीपत ने इसे निभाने में जिस प्रतिभा और निष्ठा का परिचय दिया वो इस को साबित करती है कि साहित्य उनकी रगों में बसता था. उन्होंने पिता की परिपाटी को आगे तो बढ़ाया ही बल्कि नई प्रतिभाओं को प्रेरित करने और उन्हें सुअवसर देने की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी भी निभाई. हिंदी साहित्य के चंद जाने-माने नाम मसलन मुक्तिबोध, सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' किसी किसी किसी प्रकार से 'हंस' से जुड़ गए और श्रीपत के साहित्यिक सफर का हिस्सा बने.

कुछ वर्षों पश्चात 'हंस' बंद हो गया. अब श्रीपत ने एक नई मासिक पत्रिका आरंभ की जिसका नाम था 'कहानी'. इस पत्रिका के संपादन का जिम्मा उन्होंने खुद अपने पास रखा. 'कहानी' में साहित्य की बेहतरीन और ऊंची श्रेणी की लघु कथाएं प्रकाशित हुईं. इस पत्रिका का संपादकीय श्रीपत खुद 'कहानी की बात' शीर्षक से लिखते थे. उनके संपादकीय सिर्फ दिलचस्प और पठनीय होते थे बल्कि आलोचना की दुनिया में मील के पत्थर के समान थे. 'कहानी की बात' से उन्होंने साबित कर दिया कि भाषा और साहित्य दोनों पर उनकी कितनी ज़बरदस्त पकड़ थी.

सालों-साल प्रकाशित करने के बाद एक समय गया जब 'कहानी' का सफर समाप्त करना पड़ा. बाद में सरस्वती प्रेस ने श्रीपत जी के संपादकीय का संकलन 'कहानी की बात' नाम से उनके जीवनकाल में ही प्रकाशित किया.

'कहानी' पत्रिका का प्रकाशन करते हुए भी श्रीपत ने उभरते हुए नव-साहित्यकारों की अनदेखी नहीं की. 'कहानी' में उस समय की कई उभरती प्रतिभाओं को मौका मिला जिन्होंने बाद में साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना विशेष स्थान बनाया. 'कहानी' के ज़रिये जो लोग साहित्य संसार में आगे आए उनमें कमलेश्वर, धर्मवीर भारती, भीष्म साहनी, कृष्णा सोबती, शानी आदि प्रमुख हैं. सचमुच, श्रीपत के अंदर उभरती प्रतिभाओं की सही पहचान करने की विलक्षण प्रतिभा थी. उन्होंने प्रतिभाओं को सराहा, प्रोत्साहित किया और लेखन का एक बेहतरीन मंच दिया. श्रीपत के इसी जज़्बे को सलाम.

बहुत से लोग शायद यह नहीं जानते कि श्रीपत साहित्यकार होने के साथ-साथ एक बेहतरीन पेंटर भी थे. ताज्जुब करने वाली सबसे बड़ी बात तो यह है कि उन्होंने पेंटिग की कोई औपचारिक शिक्षा हासिल नहीं की और स्वयं की प्रेरणा और जिज्ञासा ही उन्हें इस विधा में आगे ले गई. उन्होंने मॉडर्न आर्ट में रुचि दिखाई और एक महत्वपूर्ण मुकाम हासिल किया.

उन्होंने जिस शिद्दत और खूबसूरती से पेंटिंग की उसमें उन्हें असाधारण सफलती हासिल हुई. श्रीपत की पेंटिग्स तत्कालीन विश्वस्तरीय पेंटरों जैसे राम कुमार और एम एफ हुसैन के साथ प्रदर्शित हुई. इसके अलावा 1963 में जापान में आयोजित 7th Tokyo Biennale में भी उनकी पेंटिंग्स का प्रदर्शन हुआ. लेकिन कुछ वर्षों बाद उन्होंने पेंटिंग करना बंद कर दिया. शायद यही वजह है कि मशहूर कला समीक्षक रिचर्ड बार्थोलोमियू ने उन्हें 'भूले-बिसरे पेंटरों' की श्रेणी में रखा.

श्रीपत राय को हिंदी साहित्य, पत्रकारिता, आलोचना और कला के लिए ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन व्यक्तित्व के धनी इंसान के तौर पर भी जाना जाता है. वैसे तो वो शर्मीले स्वभाव के व्यक्ति थे और ज़्यादा कहीं आना-जाना या मिलना-जुलना पसंद नहीं करते थे. तमाम लोग उनका इंटरव्यू लेने घर जाते थे पर अधिकांश को निराशा ही हाथ लगती थी.

एकाकी जीवन को पसंद करने वाले श्रीपत राय उर्दू और बांग्ला भाषा के अच्छे जानकार थे और बखूबी बोलते भी थे. संगीत के प्रति उनकी गहरी रुचि थी और रबीन्द्र संगीत उनको बहुत प्रिय था.

असाधारण व्यक्तित्व और प्रतिभा के धनी श्रीपत राय का निधन जुलाई 1994 को उनके इलाहाबाद स्थित निवास में हुआ.

उनकों मेरा नमन.

श्रीपत राय के ऊपर मूल रूप से अंग्रेज़ी में लिखे गए लेख का हिंदी अनुवाद अपूर्व राय ने किया और विजय राय द्वारा संपादित पत्रिका 'लमही' में अप्रैल 2018 को प्रकाशित हुआ. 'लमही' का कवर और प्रकाशित लेख की फोटो आपके लिए.
लेखक प्रेमचंद के अनुज बाबू महताब राय के सुपुत्र हैं.
पता: D-21, Sector-12
         NOIDA- 201301

(हिंदी अनुवाद: अपूर्व राय)

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http://apurvaopinion.blogspot.in/2017/07/premchands-legacy.html