एक मैं हूं और एक है मेरा चेला. हर ख़बर और हर विषय पर अपनी बेबाक राय देना चेले की ख़ास आदत है. इतना ही नहीं ज़रूरत पड़ने पर बहस करता है और कभी- कभी तो कटबहसी भी. लेकिन उसके सजग और चैतन्य होने की दाद देनी पड़ेगी.
कुछ दिन पहले चेले ने अख़बार में छपी एक ख़बर पढ़ाई. य़ह ख़बर एक ग़रीब और बूढ़े रिक्शेवाले की थी जिसको रुपयों से भरा एक थैला मिलता है. बेचारा रिक्शेवाला ग़रीब था, झोपड़ी में रहता था, खाने का ठिकाना नहीं था लेकिन फिर भी उसका ईमान नहीं डोला और वह उस थैले को ले जाकर थाने में जमा करा आया यह सोचकर कि यह किसी दूसरे की संपत्ति है और पुलिस उसे उसके मालिक तक पुहंचा देगी.
मैंने कहा कि वाकई ख़बर झकझोर देने वाली है और ईमान की एक लाजवाब मिसाल है. लेकिन इसमें कोई ख़ास बात भी नहीं है क्योंकि सालभर में ऐसी चार-छह ख़बरें पढ़ने को मिल ही जाती हैं. हम सब इनको पढ़ते हैं, ग़रीब की प्रशंसा में दो शब्द कहते हैं और फिर वाकये को भुला बैठते हैं.
चेला बोला, यहीं तो मात खा गए गुरु. तुम भी उन लाखों पाठकों की तरह हो जिन्होंने ख़बर पढ़ी और भुला दिया. उसने कहा, लेकिन गुरु, मैंने इस घटना को भुलाया नहीं बल्कि उस पर गहराई से मनन किया. मैंने इस तरह की कई घटनाओं की बारीकियों को देखा और अपना नतीजा निकाला.
मैं कुछ उत्साहित हुआ और चेले से कहा मेरा भी कुछ ज्ञानवर्धन करे.
चेले ने कहा कि ऐसा क्यों होता है कि हर बार रुपयों से भरा बैग किसी ग़रीब को ही मिलता है. वह ग़रीब या तो रिक्शा वाला होता है, ऑटो चलाने वाला होता है, कुली होता है या फिर कोई मज़दूर. ये सभी लोग ग़रीब हैं, दो जून की रोटी के लिए दिन-दिन भर पसीना बहाते हैं, अपने अरमानों को पूरा करने के लिए सारी ज़िदगी गुज़ार देते हैं और शौक पालने का तो उनके जीवन में कोई स्थान ही नहीं है.
चेले ने दूसरी बात यह कही कि ये सभी ग़रीब लोग या तो अशिक्षित हैं या फिर बहुत कम पढ़े-लिखे. इनमें से ज़्यादातर तो अपना नाम तक नहीं लिख पाते होंगे या फिर थोड़ा- बहुत लिख-पढ़ लेते होंगे.
बात ठीक से मेरी समझ में नहीं आई. मैने चेले को फटकारा और कहा कि पहेलियां मत बुझाए और साफ-साफ कहे क्या कहना चाहता है.
चेले ने समझाते हुए कहा कि ग़ौर करने वाली बात ये है कि समाज के जो लोग अशिक्षित हैं या फिर कम पढ़े-लिखे हैं उन्हीं लोगों में धर्म, ईमान और सदाचार का उदाहरण देखने को मिलता है. चेले ने कहा कि देश के किसी भी कोने से ऐसी घटना पढ़ोगे तो यही पाओगे कि ग़रीब को रुपयों से भरा बैग मिला और उसने उसे लौटा दिया. ऐसा करते वक्त न तो उसका मन डोला और न ही उसे अपने माता- पिता या बीवी-बच्चों का ख्याल आया.
चेले ने कहा कि अगर ऐसा ही कोई थैला तुम्हें या मुझे मिलता तो हम उसे लौटाने से पहले दस बार ज़रूर सोचते.
चेले की बात सुनकर मैं अवाक रह गया और कहा इसे कहते हैं गुरु गुड़ ही रह गए और चेला शक्कर हो गए!
इसके बाद चेला तो चला गया पर मन में खलबली पैदा कर गया. मैं सोचने लगा क्या सचमुच ग़रीब और अनपढ़ ज़्यादा ईमानदार होते हैं? मैंने तो अब तक यही जाना था कि हर मां- बाप अपने बच्चों को पढ़ाना-लिखाना चाहता है ताकि आगे चलकर उसकी संतान ऊंची शिक्षा हासिल करे, अच्छी नौकरी पाए और खूब तरक्की करे. बच्चे अच्छी बातें सीखें इसके लिए बचपन से ही पंचतंत्र जैसी कहानियां पढ़ाई गईं, राजा राम का उदाहरण रखा गया और राजा हरिश्चंद्र की मिसाल दी गई. बचपन से ही देशभक्ति के गीत सुनाए गए और परिश्रम के मीठे फल पर निबंध लिखवाए गए. मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया कि जिस देश के बच्चों की शिक्षा की नींव इतनी खूबसूरत हो उस देश के बच्चों का चरित्र भला कैसे खराब हो सकता है.
लेकिन कहीं न कहीं कोई चूक तो ज़रूर हुई है. देश में बेईमानी और भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और एक से बढ़कर एक चेहरे सामने आ रहे हैं. ये सभी लोग खूब पढ़े- लिखे हैं– ग्रेजुएट से लेकर डॉक्टरेट तक. इतना ही नहीं ये सभी ऊंचे- ऊंचे पदों पर आसीन भी हैं और उन्हें जीवन में किसी तरह की कमी भी नहीं है. लेकिन त्रासदी देखिए कि कोई भी सरकारी विभाग ऐसा नहीं है जहां भ्रष्टाचार न हो. चाहे खेल विभाग लें, उद्योग लें, रेलवे लें, विज्ञान और स्वास्थ्य की बात करें, इनकम टैक्स और शिक्षा विभाग लें या फिर डिफेंस की तरफ ही देखें– कोई भी भ्रष्टाचार के किस्सों से अछूता नहीं है.
हर सरकारी कर्मचारी- क्लर्क से लेकर आईएएस तक, सभी पढ़े- लिखे हैं. इन सबने परीक्षा देकर नौकरी पाई और सभी अच्छा खाते है, अच्छा रहते हैं और अच्छा पहनते हैं. लेकिन फिर इन्हीं में से कई ऐसे हैं जिनके लालच की सीमा नहीं. लोभ उन पर इस तरह हावी हो जाता है कि उन्हें देश और समाज सब भूल जाता है. सरकारी प्रोजेक्ट हो, सरकारी धन हो और सरकारी कर्मचारी हो तो फिर भला हेरा- फेरी क्यों न हो!
शिक्षा ने इन कर्मचारियों को अच्छी नौकरी तो दिला दी लेकिन साथ ही इन्हें चालाक और सयाना भी बना दिया. हाथ में पैसा आया और सत्ता आई तो फिर ईमान डोल गया. पहले एक कार खरीदी फिर घर के हर सदस्य के लिए कारें खरीदीं. पहले एक घर बनवाया फिर होम टाउन से लेकर पहाड़ों तक बेनामी घर खरीद डाला. आखिर मन चंचल है न जाने कब कहां जाकर रहने का दिल कर जाए. खाने- पीने, घूमने-फिरने के तौर तरीके भी बदल गए और आसानी से आ रहा रुपया पानी की तरह खर्च होने लगा. पैसा आए तो खर्च की सीमा थोड़े ही होती है.
लेकिन कहते हैं न जब पानी सर के ऊपर चढ़ जाता है तो फिर परेशानी होने लगती है. यही भ्रष्टाचार के साथ हो रहा है. बेईमानी, हेरा-फेरी और झूठ इतना हावी हो गया है कि पूरे देश में हर तरफ इसके विरोध में आवाज़ गूंज रही है.
भ्रष्टाचार के विरोध में दो ऐसे व्यक्ति सामने आ खड़े हुए हैं जो अपने दायित्व के लिए तो जाने जाते हैं लेकिन अपनी शिक्षा के लिए नहीं. वाह मेरे चेले वाह, तूने तो मेरी आंखें ही खोल दीं. भ्रष्टाचार और पढ़े-लिखों के खिलाफ आवाज़ अब कम पढ़े- लिखे ही तो उठाएंगे. आखिर चरित्र नाम की चीज़ उन्हीं के पास सुरक्षित जो है. शिक्षा ने बहुत से लोगों को बड़ा बनाया, सदाचारी बनाया और चरित्रवान भी बनाया है. पर अब वक्त बदल गया है और ये सब नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए हैं.
आज जब छोटे- छोटे बच्चों को स्कूल जाते देखता हूं तो मन दुविधा में पड़ जाता है. आखिर क्यों जा रहे हैं ये स्कूल? सोचता हूं अगर पढ़ाई न करते तो शायद बेहतर इंसान बनते. पर मैं ऐसा कभी नहीं चाहूंगा क्योंकि मैं शिक्षा के महत्व को समझता हूं. समाज और देश की तरक्की के लिए शिक्षा बहुत ज़रूरी है. मैं यह भी नहीं चाहूंगा कि शिक्षा पाकर ये बच्चे ऐसे अफसर बनें जो घोटाला करते हैं, हेरा-फेरी करते हैं और स्वार्थी होते हैं.
बेहतर होता कि ये बच्चे स्कूल में शिक्षा प्राप्त करते और उस रिक्शावाले से भी ईमान का पाठ सीखते जिसके रिक्शे में बैठकर वो स्कूल जा रहे हैं.
June 10, 2011
खो गया ईमान
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Born in Allahabad, brought up in Delhi I served media for over 27 years. Managing Editor, Centre for Media Solutions (CMS). Write Blogs-- 'Second Opinion' (English) and 'मेरे ख़्याल से' (Hindi-- Mere Khayal Se) expressing concern on issues I feel strongly about.
Started career from English daily 'Patriot'. Switched to TV and worked for ANI and Sahara Samay news channel. Shifted to online news and became one of the founders of samaylive.com & saharasamay.com.
Privileged to have an enlightened family background. My father (Lt.) Vinaya Kr Rai was a prof of psychology. He has several books and numerous write-ups to his credit. My grandfather Mahtab Rai, General Manager with 'AAJ' newspaper, Varanasi, was younger brother of Munshi Premchand, legendary Hindi writer/ novelist.
My mother Smt Pushpa Rai is from Lucknow. She is the youngest sister of (lt.) Sumitra Kumari Sinha- renowned Hindi poetess who served AIR, Lucknow and earned fame as Batasha Bua.
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